बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना रहा: जस्टिस गवई बोले- हर आदमी का सपना होता है आशियाना हो, क्या इसे छीन सकते हैं

नई दिल्ली4 मिनट पहले
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राजस्थान के उदयपुर में 17 अगस्त को चाकूबाजी के आरोपी के पिता सलीम के घर पर बुलडोजर एक्शन हुआ था।
बुलडोजर एक्शन मामले में सु्प्रीम कोर्ट आज यानी बुधवार को फैसला सुना रहा है। मामला सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विश्वनाथन की बेंच के पास है। बेंच ने 1 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। तब बेंच ने साफ किया था कि फैसला आने तक देशभर में बुलडोजर एक्शन पर रोक जारी रहेगी।
फैसला पढ़ते हुए जस्टिस बीआर गवई ने कहा, “एक आदमी हमेशा सपना देखता है कि उसका आशियाना कभी ना छीना जाए। हर एक का सपना होता है कि घर पर छत हो। क्या अधिकारी ऐसे आदमी की छत ले सकते हैं, जो किसी अपराध में आरोपी हो। हमारे सामने सवाल यही है।

कोई आरोपी हो या फिर दोषी हो, क्या उसका घर बिना तय प्रक्रिया का पालन किए गिराया जा सकता है? हमने क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में न्याय के मुद्दे पर विचार किया। और यह भी कि किसी भी आरोपी पर पहले से फेैसला नहीं किया जा सकता।
मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें रखी थीं। पिछली सुनवाई में उन्होंने कहा था- बुलडोजर एक्शन के दौरान आरोप लग रहे हैं कि समुदाय विशेष को निशाना बनाया जा रहा है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- भारत धर्मनिरपेक्ष देश है। जो भी गाइडलाइन बनाएंगे, वो सभी के लिए होगी।
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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता– मैं उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश की ओर से पेश हुआ हूं, लेकिन बेंच ने कहा है कि गाइडलाइन पूरे देश के लिए होगी इसलिए मेरे कुछ सुझाव हैं। बहुत सारी चीजों पर ध्यान दिया गया है। अगर कोई आदमी किसी अपराध में दोषी है तो यह बुलडोजर एक्शन का आधार नहीं है।
जस्टिस गवई- अगर वो दोषी है, तो क्या यह बुलडोजर एक्शन का आधार हो सकता है?
सॉलिसिटर जनरल- नहीं। आपने कहा था कि नोटिस इश्यू किया जाना चाहिए। ज्यादातर म्युनिसिपल कानूनों में केस के हिसाब से नोटिस जारी करने की व्यवस्था होती है। आप देख सकते हैं कि नोटिस रजिस्टर्ड पोस्ट के जरिए भेजा गया है। नोटिस में जिक्र होना चाहिए कि किस कानून का उल्लंघन किया गया है।
जस्टिस गवई- हां एक राज्य में भी अलग-अलग कानून हो सकते हैं। हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं, हम जो भी गाइडलाइन बनाएंगे वह पूरे देश के लिए होगी।
जस्टिस विश्वनाथन- इसके लिए एक ऑनलाइन पोर्टल होना चाहिए। इसे डिजिटलाइज कीजिए। अफसर भी सेफ रहेगा। नोटिस भेजने और सर्विस की स्थिति भी पोर्टल पर रहेगी।
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- 17 सितंबर : केंद्र बोला- हाथ न बांधें, कोर्ट ने कहा- आसमान नहीं फट पड़ेगा सुप्रीम कोर्ट ने 17 सितंबर को कहा था 1 अक्टूबर तक बुलडोजर एक्शन नहीं होगा। अगली सुनवाई तक देश में एक भी बुलडोजर कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। जब केंद्र ने इस ऑर्डर पर सवाल उठाया कि संवैधानिक संस्थाओं के हाथ इस तरह नहीं बांधे जा सकते हैं। तब जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा- अगर कार्रवाई दो हफ्ते रोक दी तो आसमान नहीं फट पड़ेगा। पढ़ें पूरी खबर…
- 12 सितंबर: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- बुलडोजर एक्शन कानूनों पर बुलडोजर सुप्रीम कोर्ट ने 12 सितंबर को भी कहा था कि बुलडोजर एक्शन देश के कानूनों पर बुलडोजर चलाने जैसा है। मामला जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच में था। दरअसल, गुजरात में नगरपालिका की तरफ से एक परिवार को बुलडोजर एक्शन की धमकी दी गई थी। याचिका लगाने वाला खेड़ा जिले के कठलाल में एक जमीन का सह-मालिक है। पढ़ें पूरी खबर…
- 2 सितंबर: कोर्ट ने कहा था- अतिक्रमण को संरक्षण नहीं सुप्रीम कोर्ट ने 2 सितंबर को सुनवाई के दौरान कहा था कि भले ही कोई दोषी क्यों न हो, फिर भी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना ऐसा नहीं किया जा सकता। हालांकि बेंच ने यह भी स्पष्ट किया था कि वह सार्वजनिक सड़कों पर किसी भी तरह अतिक्रमण को संरक्षण नहीं देगा। लेकिन, इस मामले से जुड़ी पार्टियां सुझाव दें। हम पूरे देश के लिए गाइडलाइन जारी कर सकते हैं।

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मध्य प्रदेश में बुलडोजर एक्शन की शुरुआत 90 के दशक में हुई थी। उस समय बुलडोजर विकास का प्रतीक था। पूर्व सीएम बाबूलाल गौर ने पटवा सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री रहते हुए अतिक्रमण हटाने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल किया था। साल 2017 में योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम बने। उन्होंने बुलडोजर को कानून व्यवस्था से जोड़ दिया। यूपी के इस मॉडल को 2018 में मप्र की कमलनाथ सरकार ने अपनाया। एमपी में जब शिवराज सरकार की वापसी हुई तो बुलडोजर की स्पीड बढ़ गई। पूरी खबर पढ़ें…
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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर फैसला अब 3 जजों की नई बेंच करेगी। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने 4:3 के बहुमत से 1967 के अपने ही फैसले को पलट दिया। 8 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई संस्थान सिर्फ इसलिए अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं खो सकता, क्योंकि उसे केंद्रीय कानून के तहत बनाया गया है। 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने अजीज बाशा बनाम केंद्र सरकार के केस में कहा था कि केंद्रीय कानूनों के तहत बना संस्थान अल्पसंख्यक संस्थान का दावा नहीं कर सकता। पूरी खबर पढ़ें…