बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग खारिज: सरकार ने कहा- 2012 में भी मंत्री समूह इसे नकार चुका; लालू बोले- नीतीश इस्तीफा दें – Patna News

जदयू सांसद रामप्रीत मंडल ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने पर केंद्र सरकार से सवाल पूछा था। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने जवाब दिया कि NDC के पैमानों के मुताबिक यह संभव नहीं है।
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग केंद्र ने खारिज कर दी है। जदयू सांसद रामप्रीत मंडल ने लोकसभा में पूछा था कि क्या केंद्र सरकार के पास बिहार को विशेष दर्जा देने की कोई योजना है? जवाब में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि राष्ट
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मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि NDC ने विशेष राज्य के लिए पहाड़ी या दुर्गम जगह पर बसाहट, कम जनसंख्या घनत्व और बड़ी संख्या में आदिवासी आबादी होने की शर्त रखी है। बॉर्डर पर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थानों पर बसे या आर्थिक और इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में पिछड़े राज्यों को भी विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता है।
मंत्री ने अपने जवाब में कहा कि 2012 में यूपीए सरकार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की जरूरतों की स्टडी के लिए इंटर मिनिस्ट्रियल ग्रुप (IMG) बनाया था। IMG ने 30 मार्च 2012 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इसमे कहा गया था कि NDC के मानकों के आधार पर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देना संभव नहीं है।

लालू बोले- नीतीश वादा नहीं निभा सके, इस्तीफा दें
बिहार में राजद और जदयू समेत कई पार्टियां विशेष राज्य के दर्जे की मांग उठाती रही हैं। बिहार में भाजपा और जदयू की साझा सरकार है, लिहाजा राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने नीतीश का इस्तीफा मांगा है। दिल्ली में उन्होंने कहा- नीतीश कुमार ने कहा था कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाएंगे। इसलिए अब उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।
इधर, संसद का मानसून सत्र शुरू होने के पहले 21 जुलाई को ऑल पार्टी मीटिंग में जदयू के राज्यसभा सांसद संजय झा ने भी कहा था कि हमारी पार्टी की शुरू से मांग है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले। अगर इसमें कोई तकनीकी समस्या है तो विशेष पैकेज जरूर मिले। हम केंद्र की नीतियों में बदलाव चाहते हैं, जो बिहार को श्रम आपूर्ति का केंद्र मानता है।
नीतीश 2005 से बिहार के लिए विशेष दर्जा मांग रहे
- 2005 में जब नीतीश पहली बार बिहार के सीएम बने थे। तब उनका कहना था कि झारखंड के बिहार से अलग होने के बाद बिहार एक पिछड़ा और गरीब राज्य बनकर रह गया है। उसके बाद से नीतीश लगातार बिहार के लिए विशेष दर्जे की मांग करते रहे हैं।
- 2009 के लोकसभा चुनाव के पहले नीतीश ने कहा था कि NDA और UPA में से जो भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए तैयार होगा, हम उसका समर्थन करेंगे।
- बीते साल अक्टूबर में जब बिहार की नीतीश सरकार ने जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी किए, तब भी विशेष दर्जे की मांग दोहराई।
- 24 जनवरी 2024 को कर्पूरी ठाकुर की जयंती के मौके पर नीतीश ने कहा कि बिहार की तरक्की के लिए विशेष दर्जा दिए जाने की जरूरत है।
- पिछले साल नीतीश ने कहा था कि बिहार में करीब 94 लाख गरीब परिवार रहते हैं। 5 साल के लिए विशेष राज्य का दर्जा मिले बिहार सरकार को हर गरीब घर के लिए 2.5 लाख रुपए जुटाने में मदद मिलेगी।

विशेष राज्यों को 90% अनुदान, सस्ता कर्ज मिलता है
विशेष राज्य का दर्जा पाने वाले राज्यों को केंद्र सरकार से मिलने वाली राशि में से 90% अनुदान और 10% रकम बिना ब्याज के कर्ज के तौर पर मिलती है। जबकि सामान्य राज्यों को केंद्र सरकार की तरफ से 30% राशि अनुदान के रूप में और 70% राशि कर्ज के रूप में दी जाती है।
विशेष राज्यों को एक्साइज, कस्टम, कॉर्पोरेट, इनकम टैक्स में भी रियायत मिलती है। केंद्रीय बजट में प्लान्ड खर्च का 30% हिस्सा विशेष राज्यों को मिलता है। विशेष राज्यों द्वारा खर्च नहीं हुआ पैसा भी अगले वित्त वर्ष के लिए जारी हो जाता है।
49 साल पहले 3 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला
1969 तक केंद्र के पास राज्यों को अनुदान देने का कोई निश्चित मानक नहीं था। तब केंद्र की ओर से राज्यों को सिर्फ योजना आधारित अनुदान ही दिए जाते थे। 1969 में पांचवें वित्त आयोग ने गाडगिल फॉर्मूले के तहत पहली बार 3 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया। इनमें असम, नगालैंड और जम्मू-कश्मीर थे।
अब तक देश में 14 राज्यों को विशेष दर्जा मिला है। 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक अब नॉर्थ ईस्ट और पहाड़ी राज्यों को छोड़कर किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता।

संविधान में विशेष राज्य का दर्जा देने का प्रावधान नहीं
संविधान में विशेष राज्य का दर्जा देने का प्रावधान नहीं है। 1969 में पहली बार पांचवें वित्त आयोग के सुझाव पर 3 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला। इनमें वे राज्य थे, जो अन्य राज्यों की तुलना में भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक संसाधनों के लिहाज से पिछड़े थे। नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल ने पहाड़, दुर्गम क्षेत्र, कम आबादी, आदिवासी इलाका, अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर, प्रति व्यक्ति आय और कम राजस्व के आधार पर इन राज्यों की पहचान की।
बिहार के तर्क हैं कि राज्य की गरीबी और प्राकृतिक संसाधनों की कमी के अलावा, राज्य में सिंचाई के लिए पानी की कमी है। राज्य के उत्तरी इलाके में नियमित बाढ़ और दक्षिणी हिस्से में सूखे की समस्या रहती है। साथ ही यह भी कहना है कि राज्य के बंटवारे में उद्योगों झारखंड में चले गए, जिससे बिहार में रोजगार की कमी हो गई। इस लिहाज से राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए।