Published On: Wed, Jun 18th, 2025

बिहार के 5 बड़े दलित नरसंहार, जिसने लालू-राबड़ी राज में ठोकी थी आखिरी कील, एक बार फिर चर्चा में?


पटना. बिहार चुनाव से पहले दलितों को लेकर राज्य की राजनीति गर्म है. लालू यादव के जन्मदिन पर बाबा साहेब आंबेडकर के फोटो के साथ जो हुआ, उसके बाद से बिहार की राजनीति में कोहराम मच गया है. बीजेपी इस घटना को लालू-राबड़ी राज में दलितों के साथ हुए नरसंहार से जोड़कर राजनीतिक लाभ उठाने में लगी हुई है. वहीं, आरजेडी इस घटना को फालतू की बात कहकर टल रही है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या सच में लालू यादव का दलितों के प्रति बेरुखी का पुराना इतिहास रहा है? क्यों बीजेपी अब लालू यादव और राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री रहते बिहार में दलितों पर हुए अत्याचार और नरसंहार का मुद्दा उठा रही है? आइए बिहार में 90 के दशक में दलितों पर हुए अत्याचार की पांच बड़ी घटनाओं के बारे में जानें.

1990 में जब लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने सामाजिक न्याय का नारा बुलंद किया था. गोपालगंज के एक यादव परिवार से निकले लालू ने जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से अपनी सियासी पारी शुरू की थी. मंडल आयोग की सिफारिशो को लागू कर उन्होंने पिछड़े, दलित, और अल्पसंख्यक समुदायों को एक नई राजनीतिक आवाज दी. उनके समर्थक उन्हें ‘दलितों-पिछड़ों का मसीहा’ कहते थे, लेकिन उनके आलोचक उनके शासन को ‘जंगलराज’ करार देते हैं, जिसमें अपराध और नरसंहार की घटनाएं चरम पर थीं. लालू-राबड़ी के 1990 से 2005 तक शासनकाल में बिहार में कई नरसंहार हुए, जिनमें दलित और अति पिछड़े समुदाय सबसे ज्यादा निशाने पर रहे.

लालू-राबड़ी राज में पांच बड़े नरसंहार
1-बथानी टोला नरसंहार- साल 1996 में भोजपुर जिले में रणवीर सेना ने 21 दलितों की हत्या गाजर-मूली की तरह कर दी. इस नरसंहार में जिन लोगों की मौत हुई उसमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल थे. यह घटना लालू के शासनकाल में हुई और इसे सामाजिक न्याय के उनके दावों पर एक बड़ा धब्बा माना गया.

2- लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार- साल 1997 में जहानाबाद जिले में रणवीर सेना ने 58 दलितों की बर्बर हत्या की, जिनमें 27 महिलाएं और 16 बच्चे शामिल थे. राबड़ी देवी तब मुख्यमंत्री थीं. इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया और राजद सरकार पर नरसंहारियों को संरक्षण देने का आरोप लगा.

3- शंकर बिगहा नरसंहार- साल 1999 में जहानाबाद में ही 23 दलितों की हत्या कर दी गई. इस बार भी हत्या का आरोप रणवीर सेना पर लगा. राबड़ी देवी की सरकार पर अपराधियों को सजा न दिलाने का आरोप लगा. बाद में ट्रायल के दौरान कई मामलों में दोषियों को बरी कर दिया गया.

4- बारा नरसंहार- साल 1992 में गया जिले में 35 लोगों की हत्या कर दी गई, जिसमें ज्यादातर दलित थे. हत्या माओवादियों ने की, जिसे राजद शासन के दौरान कानून-व्यवस्था की विफलता का एक और उदाहरण माना गया.

5- 16 जून 2000 को औरंगाबाद के मियांपुर नरसंहार हुआ, जिसमें 34 दलितों और अति पिछड़ों की हत्या की गई. यह नरसंहार भी भूमि विवाद और माओवादी गतिविधियों के खिलाफ प्रतिशोध में हुआ. मृतकों में ज्यादातर दलित मजदूर शामिल थे. इस घटना ने राबड़ी सरकार की नाकामी को फिर से उजागर किया.

कुलमिलाकर इन नरसंहारों में सैकड़ों दलित मारे गए. एक अनुमान के मुताबिक 1990-2005 के बीच कम से कम 300-400 दलित इन हिंसक घटनाओं का शिकार हुए. बिहार को करीब से जानने वाले पत्रकारों की मानें तो इन नरसंहारों ने बिहार में लालू यादव और रबड़ी देवी शासन काल में आखिरी कील मार दी. पीड़ित लालू-राबड़ी राज को आजतक कोस रहे हैं. बथानी टोला, लक्ष्मणपुर बाथे और शंकर बिगहा जैसे नरसंहार बिहार के इतिहास में काले धब्बे के तौर पर आज भी याद किए जा रहे हैं. ऐसे में लालू यादव के जन्मदिन पर आंबेडकर वाला विवाद से जोड़कर बीजेपी चुनावी रंग देने में लग गई है.

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