Published On: Mon, Aug 12th, 2024

बिहार के इस जिले में आवारा कुत्तों का टेरर, 7 महीनों में 5 हजार लोगों को काटा, खौफ में बूढ़े-बच्चे


बिहार का भभुआ जिला लावारिस कुत्तों के आतंक से त्रस्त है, बूढ़े-बच्चे खौफ में है। कुत्तों का झुंड कब किस पर हमला कर दें। कोई नहीं जानता। लावारिस कुत्ते हर महीने औसतन 1150 लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि इस वर्ष अब तक 223 दिनों में 8225 लोगों ने सदर अस्पताल में रैबिज इंजेक्शन लिया है। शहर के वार्ड 24 निवासी राज कुमार शनिवार की सुबह टहलने गए थे। कुत्तों के झुंड ने उन्हें काटकर जख्मी कर दिया। नोनरा के अमजीत पासवान और सैथा के जितेन्द्र राम को भी कुत्तों ने अपना शिकार बनाया। सदर अस्पताल में पहुंचे लोगों ने एआरबी का इंजेक्शन लगवाया। सदर अस्पताल के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2024 के जनवरी माह से 10 अगस्त तक 8225 लोगों को एआरबी इंजेक्शन दिया गया है।

2024 में कब कितने लोगों को कुत्तों ने काटा (स्रोत सदर अस्पताल)

माह           पीड़ित

जनवरी      1533

फरवरी      1484

मार्च           1507

अप्रैल         1118

मई               849

जून               812

जुलाई           716

अगस्त 10 तक 186

शहरवासियों का कहना है कि यह नगर परिषद की जिम्मेदारी है कि वो आवारा कुत्तों को पकड़े, उसकी नसबंदी कराए। वन विभाग से सामंजस्य बैठाकर खतरनाक बन चुके कुत्तों को जंगलों में छोड़े। नागरिकों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाए। लेकिन, नगर परिषद ने अभी तक इस तरह का कोई काम नहीं किया है। वह कर्मियों की कमी का रोना रो रही है। पशुपालन विभाग के पास भी आवारा कुत्तों की नसबंदी करने की कोई सुविधा नहीं है।

कुत्तों के काटने से होने वाली मौतों की तुलना में रैबीज से बचाव के लिए टीकाकरण और नसबंदी किए हुए कुत्तों की संख्या बहुत कम है। घरों में पाले जानेवाले कुत्तों का ही टीकाकरण कराया जाता है। बचाव के उपायों के प्रति जनचेतना के अभाव, अपर्याप्त कुत्ता टीकाकरण तथा कुत्ते के काटने के बाद रोगी की देखभाल में कमी के कारण समस्या उत्पन्न हो रही है। कुत्तों की नसबंदी के लिए प्रयास ही नहीं किए गए हैं। अगर इस उपाय को अपनाया जाए, तो कुत्तों की संख्या नियंत्रित होगी।

क्या कहते हैं शहरवासी

शहर के प्रेम प्रकाश पांडेय, बनारसी सिंह, उपेन्द्र सिंह, पिंटू सिंह, भीम यादव ने बताया कि शहर की कोई ऐसी गली या सड़क नहीं हैं। जहां आवारा कुत्तों की फौज नहीं होती। सुरक्षा के मद्देनजर से कुत्तों को पाला जाता था। गलियों के कुत्तों को दो रोटियां खिलाई जाती थी, ताकि वह पहरेदारी कर सके। लेकिन, अब तो वो आतंक का पर्याय बन चुके हैं। रात में बच्चे गलियों में निकलने में डरते हैं।

बीमारियों के वाहक हैं आवारा कुत्ते

डॉ. विनोद कुमार सिंह बताते हैं कि आवारा कुत्ते तमाम बीमारियों के वाहक होते हैं। और उनके काटने पर तुरंत इलाज की जरूरत होती है। रैबीज के ज्यादा केस आवारा कुत्तों के काटने से ही होते हैं। अगर इसका वायरस शरीर की केंद्रीय स्नायु प्रणाली में प्रवेश कर जाए, तो इससे पैदा संक्रमण लगभग असाध्य हो जाता है और कुछ ही दिनों में रोगी की जान ले बैठता है। सही ढंग से इलाज न कराने पर तो काटने के कई वर्ष बाद भी इसके विषाणु पीड़ित व्यक्ति को शिकार बना सकते हैं।

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