Published On: Tue, Jul 2nd, 2024

बिहार आरक्षण कानून रद्द करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची नीतीश सरकार, 65% किया था रिजर्वेशन


बिहार सरकार ने आरक्षण कानून में संशोधन को खारिज करने से संबंधी पटना हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इससे संबंधित याचिका बिहार सरकार की तरफ से मंगलवार को दायर कर दी गई। राज्य सरकार के स्तर से दायर की गई याचिका के बारे में महाधिवक्ता पीके शाही ने पुष्टि करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखा है ताकि हाईकोर्ट के इस मामले में आए आदेश पर विचार हो सके। याचिका अधिवक्ता मनीष कुमार के माध्यम से उच्चतम न्यायालय में दायर की गई है।

राज्य में जाति आधारित गणना कराने के बाद आई रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार ने आरक्षण कानून में संशोधन कर दिया था। संशोधित कानून के तहत राज्य सरकार ने दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों के लिए निर्धारित आरक्षण के प्रावधान 50 प्रतिशत को बढ़ाकर 65 प्रतिशत किया था। सरकार के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। उच्च न्यायालय ने 20 जून को अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि पिछले वर्ष नवंबर में राज्य विधानमंडल में सर्वसम्मति से पारित किया गया संशोधन आरक्षण कानून संविधान के प्रतिकूल हैं। यह समानता के (मूल) अधिकार का हनन करता है। 


उच्च न्यायालय की एक पीठ ने बिहार में सरकारी नौकरियों में रिक्तियों में आरक्षण (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को मंजूर कर लिया था। इनकी सुनवाई संयुक्त रूप से की गई थी। उच्च न्यायालय ने 87 पन्नों के विस्तृत आदेश में स्पष्ट किया कि उसे कोई ऐसी परिस्थिति नजर नहीं आती, जो राज्य को इंदिरा साहनी मामले में उच्चतम न्यायालय के स्तर से निर्धारित आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करने के लिए बाध्य करती हो।

न्यायालय ने यह भी कहा था कि राज्य ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में विभिन्न श्रेणियों के संख्यात्मक प्रतिनिधित्व के बजाय उनकी जनसंख्या के अनुपात के आधार पर (आरक्षण देने का) कदम उठाया। ये संशोधन जातिगत सर्वेक्षण के बाद किए गए थे, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी को राज्य की कुल जनसंख्या का 63 प्रतिशत पाया गया था। जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की हिस्सेदारी 21 प्रतिशत से अधिक बताई गई थी।

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साल 2022

1 जून: सभी दलों ने सर्वसम्मति से जाति सर्वेक्षण पर फैसला लिया

2 जून: बिहार कैबिनेट ने जाति सर्वेक्षण को हरी झंडी दी

साल 2023

7 जनवरी, 2023: जाति सर्वेक्षण का पहला चरण 7-15 जनवरी तक आयोजित हुआ

15 अप्रैल: दूसरा चरण 15 अप्रैल से 15 मई तक होना था

4 मई: उच्च न्यायालय ने जाति आधारित सर्वेक्षण पर रोक लगायी

1 अगस्त: पटना HC ने जाति सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी, सर्वेक्षण फिर से शुरू हुआ

2 अक्टूबर: बिहार सरकार ने जाति सर्वेक्षण के आंकड़े जारी किए

9 नवंबर: बिहार विधानमंडल ने सर्वसम्मति से कोटा 50% से बढ़ाकर 65% करने के लिए विधेयक पारित किया।

22 नवंबर: बिहार सरकार ने राजपत्र में कोटा वृद्धि को अधिसूचित किया 

साल 2024

11 मार्च: पटना हाईकोर्ट ने कोटा वृद्धि को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा

20 जून: पटना उच्च न्यायालय ने कोटा वृद्धि को रद्द कर दिया, इसे असंवैधानिक करार दिया

2 जुलाई- पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ नीतीश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया

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