Published On: Thu, Aug 8th, 2024

बड़े सूबे के 11 साल तक CM, 2BHK फ्लैट में काटी जिंदगी, अब डेड बॉडी पर शोध करेंगे डॉक्टर!


Buddhadeb Bhattacharjee: ऐसी कहानियां बहुत कम देखने को मिलती हैं. एक बड़े सूबे का 11 साल तक सीएम रहने के बाद कोई व्यक्ति अपना अंतिम समय एक 2बीएचके फ्लैट में काटता है. इतना ही नहीं यह व्यक्ति करीब 50 साल तक सार्वजनिक जीवन में रहता है लेकिन कट्टर विरोधियों के पास भी उस पर आरोप लगाने के लिए कुछ नहीं रहता है. उस इंसान की अंतिम इच्छा भी औरों से काफी अलग थी. उसने अपनी बॉडी दान कर दी थी. इस कारण अब इस पूर्व मुख्यमंत्री के शरीर के अंगों पर मेडिकल के छात्र शोधकार्य करेंगे. उन्होंने गुरुवार को 80 साल की उम्र में अंतिम सांस ली.

दरअसल, हम बात कर रहे हैं पश्चिम बंगाल के पूर्व सीएम बुद्धादेब भट्टाचार्यजी की. राज्य में ज्योति बसु के बाद वह वर्ष 2000 में सीएम बनाए गए थे. उनके पास ज्योति बसु की लेगेसी थी. वह वर्ष 2000 से 2011 तक राज्य के सीएम रहे. इसके बाद राज्य में ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल की सरकार बनी. ज्योति बसु और बुद्धादेब भट्टाचार्यजी ने मिलकर राज्य में 34 सालों का वाम दलों की सरकार चलाई.

2BHK में ली अंतिम सांस
भट्टाचार्यजी ने दक्षिणी कोलकाता के अपने फ्लैट में गुरुवार सुबह अंतिम सांस ली. यह एक दो बीएचके का फ्लैट है. वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उनके फेफड़े में दिक्कत थी और उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. भट्टाचार्यजी के परिवार में उनकी पत्नी मीरा और बेटी सुचेतन हैं.

भट्टाचार्यजी के नेतृत्व में 2001 और 2006 में वाम दलों ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव लड़ा. 2006 वाले कार्यकाल के दौरान उन्होंने वाम सरकार की आर्थिक नीतियों में बदलाव किया और उसे काफी हद तक उद्योग-धंधों के मुफीद किया. लेकिन, इसी दौरान उनके औद्योगिकरण के प्रयास के खिलाफ ममता बनर्जी के नेतृत्व में भारी आंदोलन हुआ. इस कारण 2011 के विधानसभा चुनाव में वाम दल हार गए. खुद भट्टाचार्यजी अपनी जादवपुर सीट से चुनाव हार गए. वह यहां से 1987 से विधायक चुने जाते रहे थे. वाम दलों की इस हार में भट्टाचार्यजी को बलि का बकरा बनाया गया.

इस तरह 2006 में 30 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करने वाली तृणमूल कांग्रेस 2011 में 184 सीटों पर जीत के साथ राज्य की राजनीतिक तस्वीर बदल दी. उसके बाद लगातार राज्य की सत्ता में तृणमूल कांग्रेस का दबदबा बना हुआ है.

खांटी ईमानदार की छवि
2011 की हार के बाद भट्टाचार्यजी और वामदलों की राजनीति को बड़ा झटका लगा. भट्टाचार्यजी हाशिये पर चले गए.एक कॉमरेड से सीएम बनने तक भट्टाचार्यजी का सफर शानदार रहा. उन्होंने 1966 में माकपा के सदस्यता ली थी. वह 1987 के ज्योति बसु की सरकार में मंत्री रहे. हालांकि बीच में कुछ मतभेदों के कारण अल्पसमय के लिए वह सरकार से बाहर भी रहे.

वर्ष 2011 के शपथ पत्र में उन्होंने बताया था कि उनके खाते में केवल 5 हजार रुपये थे. वे उस वक्त सीएम थे. उनके पास कोलकाता के पाल्म एवेन्यू में दो कमरों का एक सरकारी फ्लैट था. हालांकि उन्होंने अपने शपथ पत्र में यह भी बताया था कि उनकी पत्नी एक डेवलपमेंट कंसल्टेंट थीं और उनके पास उस वक्त करीब 32 लाख रुपये की संपत्ति थी. भट्टाचार्यजी के बारे में कहा जाता कि वह अपनी सैलरी का 80 फीसदी हिस्सा पार्टी फंड में दान कर देते थे. वह लंबे समय तक पार्टी दफ्तर में ही रहे.

Tags: West bengal

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