पति को तलाक दिए बिना दूसरी शादी की: सुप्रीम कोर्ट का आदेश- 6 महीने दूसरा पति जेल में रहेगा, उसके बाद महिला कैद में होगी

नई दिल्ली23 मिनट पहले
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सुप्रीम कोर्ट ने 15 जुलाई को महिला और उसके दूसरे पति को 6-6 महीने जेल की सजा सुनाई है। महिला ने पहले पति से तलाक लिए बिना ही दूसरी शादी कर ली थी। पहले पति ने पत्नी, सास-ससुर और पत्नी के दूसरे पति के खिलाफ केस दर्ज कराया था। सेशन कोर्ट से होता हुआ केस सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।
जस्टिस सीसी रविकुमार और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि महिला और उसके दूसरे पति को एकसाथ जेल नहीं भेजा जाएगा। पहले महिला का दूसरा पति 6 महीने जेल में रहेगा। उसकी सजा पूरी होने के दो हफ्ते के भीतर महिला को पुलिस थाने में सरेंडर करना होगा।
कोर्ट के इस फैसले के पीछे का कारण कपल का 6 साल का बेटा है। बेंच ने कहा कि बच्चे की देखभाल सही से होती रहे, इसलिए अलग-अलग सजा का प्रावधान किया गया है।

सेशन कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला, बेंच ने बदला HC का आदेश
दरअसल, याचिकाकर्चा (महिला का पहला पति) ने आरोप लगाया था कि उसका पत्नी से तलाक का मामला चल रहा था। पत्नी ने तलाक होने के पहले ही दूसरी शादी कर ली। याचिकाकर्ता ने पत्नी, पत्नी के दूसरे पति और पत्नी के माता-पिता के खिलाफ केस दर्ज कराया था।
पहले पति का आरोप था कि पत्नी को सास-ससुर ने ही दूसरी शादी के लिए बढ़ावा दिया था। मामले की सुनवाई ट्रायल कोर्ट में हुई थी। कोर्ट ने महिला के माता-पिता को इस मामले में बरी कर दिया था। लेकिन महिला और उसकी दूसरे पति को IPC की धारा 494 के तहत 1-1 साल जेल की सजाई सुनाई थी और 2 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया था।
ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ महिला के पहले पति ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई हुई और मद्रास हाईकोर्ट ने महिला और उसके दूसरे पति को अदालत उठने तक कारावास और 20 हजार रुपए के जुर्माना की सजा सुनाई थी।
मद्रास हाईकोर्ट के फैसले से नाखुश महिला के पहले पति ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और याचिका दाखिल की थी। सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया और महिला को उसके दूसरे पति सहित 6-6 महीने की जेल की सजा सुनाई। साथ ही 20 हजार रुपए के जुर्माने को घटाकर 2 हजार रुपए कर दिया।
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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (10 जुलाई) को कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपराध प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144) के तहत अपने पति से भरण-पोषण की हकदार है। इसके लिए वह याचिका दायर कर सकती है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने एक मुस्लिम युवक मोहम्मद अब्दुल समद की याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह फैसला हर धर्म की महिलाओं पर लागू होगा। मुस्लिम महिलाओं को भी गुजारा भत्ता पाने का उतना ही अधिकार है, जितना अन्य धर्म की महिलाओं को। पूरी खबर पढ़ें…