पंजाब में किसानों की भूख हड़ताल का आज चौथा दिन: केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी, DMC में बढ़ी सुरक्षा – Patiala News
शंभू व खनौरी बॉर्डर की तरफ बढ़ रहे किसान।
हरियाणा और पंजाब के खनौरी बॉर्डर से किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को हिरासत में लिए हुए चार दिन हो चुके हैं। दूसरी तरफ खनौरी बॉर्डर पर किसानों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा है। डल्लेवाल जहां लुधियाना डीएमसी में चार दिन से भूख हड़ताल पर हैं, वहीं पूर्व सैन
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जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं, केंद्र के खिलाफ किसानों की लामबंदी तेज होती जा रही है। केंद्र के साथ-साथ किसान अब राज्य सरकार के खिलाफ भी मोर्चा खोल रहे हैं। एक दिसंबर को किसानों ने संगरूर में सीएम भगवंत मान के घर को घेरने की तैयारी कर ली है। किसानों का कहना है कि राज्य सरकार की पुलिस ने डल्लेवाल को हिरासत में लिया है। केंद्र और राज्य सरकार मिलकर किसानों के खिलाफ लगी हुई है।
वहीं, डल्लेवाल से मिलने के लिए किसान नेता बड़ी गिनती में लुधियाना डीएमसी पहुंच रहे हैं। जहां बीते दिन गुरुवार जमकर विवाद भी हुआ। इसी दौरान डल्लेवाल की तस्वीर भी सामने आई है।
तीसरे दिन डल्लेवाल की पुलिस डिटेंशन में पहली तस्वीर।
खनौरी व शंभू बॉर्डर की तरफ बढ़ रहे किसान
मरणव्रत के शुरू होने के साथ ही शंभू व खनौरी बॉर्डर पर किसानों का इकट्ठा बढ़ता जा रहा है। किसान मजदूर संघर्ष मोर्चा के नेता सरवन सिंह पंधेर ने बीते दिन हजारों की गिनती में किसान खनौरी बॉर्डर के लिए रवाना किए। इसके अलावा आने वाले दिनों में माझा जोन के कई जिलों से किसान खनौरी व शंभू बॉर्डर पर पहुंच रहे हैं।
6 दिसंबर को दिल्ली कूच
किसान नेता पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि अगर 10 दिन में मामला ना सुलझा तो 6 दिसंबर को दिल्ली कूच किया जाएगा। बार-बार किसानों को ट्रैक्टर व ट्रालियां लेकर जाने के नाम पर बदनाम किया जाता है। इस बार किसानों ने लोगों की सहानुभूति हासिल करने के लिए बिना ट्रेक्टर-ट्रालियों के दिल्ली जाने का ऐलान कर दिया है।
किसान की मांग- पहले डल्लेवाल छोड़ो, फिर करेंगे बात
खन्नौरी बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा गैर राजनीतिक के बैनर तले किसानों की लगातार बैठकें हो रही हैं। किसानों की एक ही मांग है कि पहले डल्लेवाल को छोड़ा जाए, इसके बाद ही किसान प्रशासन से बातचीत को तैयार होंगे।
वहीं, गुरुवार 1 दिसंबर को मुख्यमंत्री भगवंत मान के घर का ऐलान भी कर दिया गया है। जिसके बाद स्थानीय प्रशासन व सरकार की चिंताएं बढ़ गई हैं। एक तरफ आंदोलन को दबाने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन किसान लगातार बैठकें कर अपनी रणनीति बदल रहे हैं।