नए CJI की चुनौती बढ़ाकर गए जस्टिस चंद्रचूड़? रिटायरमेंट के साथ उठने लगे सवाल
11 नवंबर का हफ्ता शुरू होने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में एक नया अध्याय शुरू होने जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का 3103 दिन का कार्यकाल पूरा हो गया. इस दौरान वह 732 दिन (9 नवंबर, 2022 से 10 नवंबर, 2024) चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) रहे. एसएच कपाड़िया (12 मई, 2010 से 28 सितंबर, 2012) के बाद इतना लंबा कार्यकाल पाने वाले वह सुप्रीम कोर्ट के पहले मुख्य न्यायाधीश रहे. वैसे, जस्टिस चंद्रचूड़ का कार्यकाल केवल इसी बात के लिए याद नहीं रखा जाएगा.
अपने विदाई समारोह में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वह सबसे ज्यादा ट्रोल किए जाने वाले चीफ जस्टिस हैं. उन्होंने चुटकी भी ली कि उनके रिटायरमेंट के बाद वे ट्रोलर्स बेरोजगार हो जाएंगे. उन्होंने ‘ट्रोल होने’ की वजह भी बताई और कहा कि जब आप अपनी निजी जिंदगी लोगों के सामने लाएंगे तो सोशल मीडिया के जमाने में ट्रोल होने का जोखिम रहेगा ही.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने सीजेआई का पद ऐसे समय संभाला था, जब न्यायपालिका साख के संकट का सामना कर रही थी. कई लोगों की नजर में न्यायपालिका की छवि सरकारपरस्त हो गई थी. जजों की नियुक्ति कें मामले में, प्रकिया और चयन, दोनों ही मुद्दों पर निष्पक्षता सवालों के घेरे में थी.
जस्टिस चंद्रचूड़ के सामने यह छवि बदलने की चुनौती थी. इसकी उन्होंने भरपूर कोशिश भी की. न केवल बतौर सीजेआई अदालतों में अपने काम से, मुकदमों पर दिए गए फैसलों से, बल्कि इससे इतर, बाहर जाकर भी. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देकर यह दावा किया कि न्यायपालिका सरकार के बिना किसी दबाव के, पूरी तरह स्वतंत्र रूप से काम करती है. मीडिया के मंच से उन्होंने साफ कहा था, ‘दबाव होता तो क्या आप ऐसे फैसलों की उम्मीद कर सकते थे?’
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने को मीडिया के लिए भी काफी हद तक ‘ओपन’ रखा था. सीजेआई चंद्रचूड़ संभवत: सबसे ज्यादा ‘मीडिया फ्रेंडली चीफ जस्टिस’ के रूप में भी याद किए जाएंगे. चीफ जस्टिस रहते हुए वह मीडिया के निमंत्रण पर कई कार्यक्रमों में इंटरव्यू देते देखे गए. उनका यह रूप न्यायपालिका का एक नया चेहरा पेश कर रहा था.
मीडिया के मंचों पर उन्होंने अपना विजन, मिशन बताते हुए न्यायपालिका का बचाव भी किया. उन्होंने अदालतों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या को न्यायपालिका में लोगों के भरोसे का एक संकेत बताया. फैसलों का हवाला देकर सरकारी दबाव से मुक्त बताया. यहां तक कि अदालतों में होने वाली लंबी छुट्टियों को लेकर कथित नकारात्मक छवि पर जवाब देने के लिए वह बाकायदा होमवर्क करके आए थे. उन्होंने पन्ने निकाल कर दुनिया के कई देशों का उदाहरण दिया और बताया कि भारत में जजों अन्य देशों की तुलना में कितना ज्यादा काम करते हैं. साथ ही, उन्होंने यह जानकारी भी दी कि कोर्ट में भले ही छुट्टी हो, पर जज उस दौरान भी अदालती काम करते रहते हैं.
बतौर सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ को पद संभालने से लेकर पूरे कार्यकाल तक मीडिया की ओर से ज्यादा तारीफें ही मिलीं. आलोचना काफी कम हुई. लेकिन, उनके कार्यकाल का अंत आते-आते कुछ ऐसा माहौल बना और मीडिया में भी ऐसी बातें आईं कि उन पर अंगुली उठने लगी.
प्रधानमंत्री का उनके घर गणेश पूजा पर जाना सार्वजनिक हुआ तो उनकी कई लोगों ने आलोचना की. उन्होंने सरकारी दबाव से मुक्त रहते हुए काम करने की जो छवि बनाई थी, उसे भी इससे धक्का लगा. उनके कार्यकाल के अंतिम वक्त में एक पत्रिका ने उन पर बहुत लंबी रिपोर्ट छाप दी, जिसमें उनके करीबी लोगों के हवाले से उनके काम की समालोचना की गई. इसमें बताया गया कि उनके काम का तरीका कुछ ऐसा था कि सरकार को राहत भी मिले और जनता को भी ऐसा लगे कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला उसके हक में दिया है. उदाहरण के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड पर आए फैसले की ही बात करें तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह तो सामने आ गया कि किसने किस पार्टी को कितने का चंदा दिया, लेकिन यह सामने नहीं आ सका कि चंदा देने के बदले में क्या किसी को सरकार की ओर से कोई गलत फायदा भी पहुंचाया गया? इस बारे में जांच का कोई आदेश सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दिया. बतौर ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ उनकी भूमिका पर भी सवाल खड़े किए गए. मतलब जजों को केस सौंपने के मामले में भी निष्पक्षता नहीं बरतने के आरोप लगाए गए.
चंद्रचूड़ का लंबा कार्यकाल होने के चलते बतौर सीजेआई उनसे उम्मीदें भी ज्यादा थीं. उनके पद संभालने पर मीडिया ने भी उनसे काफी उम्मीदें होने संबंधी खबरें छापी थीं. उनसे उम्मीदों की एक वजह बतौर जज उनके कुछ फैसले थे. ये फैसले समाज के लिए उपयोगी, लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता व संवैधानिक मूल्यों को मजबूती देने वाले और सरकार को असहज करने वाले माने गए. जस्टिस चंद्रचूड़ उन संवैधानिक पीठ का हिस्सा थे, जिसने निजता को मूल अधिकार मानने का फैसला दिया, समलैंगिकता को अपराध नहीं माना, सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की इजाजत दी और महिलाओं को जीवनसाथी चुनने का अधिकार बहाल रखा. 2018 में उन्होंने एक फैसले में अपनी अलग राय रखते हुए लिखा था कि आधार एक्ट को धन विधेयक के रूप में पारित करवाना संवैधानिक नहीं था.
ऐसे फैसलों से उनकी ऐसी छवि बनी थी, जिसके आधार पर ऐसी उम्मीद जताई गई कि बतौर सीजेआई वह जनता की निडर आवाज बनेंगे. लेकिन बतौर सीजेआई उनके कई फैसलों को इस भावना के खिलाफ बताया गया.
ऐसे माहौल में रिटायरमेंट के चलते सुप्रीम कोर्ट के सामने एक बार फिर वही स्थिति पैदा हो गई है, जो चंद्रचूड़ के सीजेआई का पद संभालते थी. उनकी जगह कुर्सी संभालने वाले जस्टिस संजीव खन्ना को इस चुनौती से निपटना होगा. उन्हें न्यायपालिका की साख मजबूत करने की चुनौती का सामना करना होगा. लेकिन, उनके लिए महज छह महीनों में यह करना आसान नहीं होगा.
Tags: DY Chandrachud, Supreme Court
FIRST PUBLISHED : November 9, 2024, 17:03 IST