नए क्रिमिनल कानूनों पर मद्रास हाईकोर्ट का केंद्र को नोटिस: कहा- पहले लॉ पैनल से सलाह लेनी चाहिए थी; चार हफ्ते में जवाब मांगा

चेन्नई2 मिनट पहले
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DMK के ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी आर एस भारती की तरफ से दाखिल याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई।
मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार को तीन नए क्रिमिनल कानूनों को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने का आदेश दिया है। राज्य की DMK सरकार ने इन कानूनों को अधिकारातीत और असंवैधानिक बताने की याचिका दाखिल की थी। इसी याचिका के जवाब में मद्रास हाईकोर्ट ने यह नोटिस जारी किया है।
DMK के ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी आर एस भारती की तरफ से दाखिल याचिका की सुनवाई जस्टिस एस एस सुंदर और एन सेंथिल कुमार की डिविजन बेंच के सामने हुई। बेंच ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए चार हफ्तों में जवाब देने को कहा है।
दरअसल, 1 जुलाई से तीन नए कानून- भारतीय सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू हुए हैं। इन्होंने इंडियन पीनल कोड (IPC), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (CrPC) और इंडियन एविडेंस एक्ट (IEA) की जगह ली है।

याचिका में कहा- सेक्शंस की अदला-बदली गैर-काूननी थी
याचिकाकर्ता के मुताबिक सरकार ने तीनों बिल पेश किए और बिना सार्थक चर्चा के इन बिलों को संसद में पास करवा दिया। उन्होंने कहा कि बिना किसी ठोस बदलाव के सिर्फ सेक्शंस की अदला-बदली करना गैर-जरूरी था। इससे मौजूदा प्रावधानों की व्याख्या करने में परेशानी होगी।
उन्होंने कहा कि सेक्शंस की अदला-बदली करने से जजों, वकीलों, न्यायपालक अथॉरिटीज और आम जनता के लिए नए प्रावधानों को पुराने प्रावधानों से मिलाना बहुत मुश्किल होगा। ऐसा लगता है यह एक्सरसाइज सिर्फ कानूनों के नाम को संस्कृतनिष्ठ करने के लिए की गई है। इसका मकसद कानूनों में बदलाव करने का नहीं था।
संसद में सिर्फ सत्ताधारी पार्टी ने यह कानून लागू किया
भारती ने आगे कहा कि सरकार यह दावा नहीं कर सकती है कि यह संसद की कार्यवाही में हुआ है। नए कानूनों को सिर्फ संसद के एक धड़े यानी सत्ताधारी पार्टी और उसकी साथ पार्टियों ने लागू किया था। इसमें विपक्षी पार्टियां शामिल नहीं थीं।
उन्होंने कहा कि एक्ट्स का नाम हिंदी/संस्कृत में लिखना संविधान के आर्टिकल 348 का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि संसद के किसी भी सदन में पेश होने वाले सभी बिलों के आधिकारिक टेक्स्ट अंग्रेजी में ही होंगे।

ये हैं सबसे बड़े बदलाव
- नए कानूनों के अनुसार आपराधिक मामलों में फैसला सुनवाई पूरी होने के 45 दिनों के अंदर आना चाहिए और पहली सुनवाई के 60 दिनों अंदर आरोप तय किए जाने चाहिए।
- बलात्कार पीड़ितों का बयान एक महिला पुलिस अधिकारी उसके अभिभावक या रिश्तेदार की मौजूदगी में दर्ज करेगी। इन केसों में मेडिकल रिपोर्ट 7 दिनों के अंदर आनी चाहिए।
- ऑर्गनाइज्ड क्राइम और आतंकवाद को परिभाषित किया गया है। राजद्रोह की जगह देशद्रोह लिखा-पढ़ा जाएगा। सभी तलाशी और जब्ती की वीडियो रिकॉर्डिंग जरूरी होगी।