धरोहर : राजशाही जमाने के तीन दरवाजे… आज भी संभालते है करौली का ड्रेनेज सिस्टम, अपने में समेटे हैं पूरा इतिहास!

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Karauli News: राजस्थान के करौली शहर के ऐतिहासिक तीन दरवाजे न केवल स्थापत्य कला के अद्भुत उदाहरण हैं, बल्कि प्राचीन जल निकासी प्रणाली की रीढ़ भी हैं. लाल पत्थरों से बनी ये संरचनाएं आज संरक्षण की कमी के चलते जर्ज…और पढ़ें
हाइलाइट्स
- करौली के तीन दरवाजे जल निकासी प्रणाली की रीढ़ हैं.
- 2016 की बाढ़ के बाद पहली बार दरवाजों की मरम्मत शुरू हुई.
- दरवाजों की संरचना लाल पत्थरों से बनी और ऐतिहासिक महत्व की है.
करौली. राजस्थान के करौली शहर में राजशाही जमाने की कई अमूल्य धरोहरें मौजूद हैं, जो आधुनिकता के इस दौर में भी अपनी ऐतिहासिक पहचान कायम रखे हुए हैं. लोकल 18 की खास सीरीज ‘धरोहर’ के अंतर्गत आज बात कर रहे हैं करौली के प्रसिद्ध तीन दरवाजों की. ये दरवाजे सिर्फ प्रवेश द्वार नहीं, बल्कि एक समय में शहर की जल निकासी प्रणाली की रीढ़ माने जाते थे. इनकी भव्यता, स्थापत्य कला और ऐतिहासिक उपयोगिता आज भी करौलीवासियों के लिए गर्व का विषय बनी हुई है.
लाल पत्थरों से बनी शाही संरचना अब देखरेख को तरस रही
इन तीन दरवाजों का निर्माण लाल पत्थरों से किया गया है, जो राजशाही स्थापत्य शैली के बेहतरीन उदाहरण हैं. इनकी बनावट और नक्काशी आज भी पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है. हालांकि अब ये संरचनाएं देखरेख के अभाव में धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील होती जा रही हैं. कई हिस्सों में दरारें और टूट-फूट स्पष्ट देखी जा सकती है. स्थानीय प्रशासन और नगर परिषद की लंबे समय तक अनदेखी के चलते यह धरोहर संरक्षण के लिए तरस रही है. इन दरवाजों का महत्व केवल स्थापत्य तक सीमित नहीं था, बल्कि ये शहर के पर्यावरण और जल संरक्षण प्रणाली से भी सीधे जुड़े हुए थे. वर्षा ऋतु में इन दरवाजों के आसपास का इलाका बेहद रमणीय हो जाया करता था. पुराने समय में लोग यहाँ पिकनिक मनाने, सैर-सपाटे और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने आते थे.
स्थानीय निवासी आलोक शर्मा बताते हैं कि इन दरवाजों की मदद से करौली में जलस्तर संतुलित बना रहता था. कुएं-बावड़ियों में पानी बना रहता और यह इलाका मीठे पानी का मुख्य स्रोत माना जाता था. उन्होंने यह भी बताया कि करौली का प्रसिद्ध रणगवां तालाब भी इन दरवाजों से जुड़ा हुआ है. जब तालाब भर जाता है तो इसका अतिरिक्त पानी इन्हीं दरवाजों से होकर बहकर पांचना बांध में पहुंचता है. आज हालांकि यह जल प्रणाली अस्त-व्यस्त हो चुकी है, लेकिन इन दरवाजों की बनावट और उनकी भूमिका आज भी विशेषज्ञों और इतिहासकारों के लिए शोध का विषय है. आधुनिक करौली की ड्रेनेज व्यवस्था की जड़ें इन्हीं संरचनाओं में छिपी हुई हैं.
नगर परिषद ने पहली बार शुरू किया संरक्षण कार्य
आलोक शर्मा के अनुसार लगातार उपेक्षा और बारिश के कारण नुकसान झेलने के बाद इस वर्ष पहली बार नगर परिषद ने इन दरवाजों की मरम्मत की जिम्मेदारी ली है. क्षतिग्रस्त पाल और नालों की मरम्मत का काम इस साल शुरू कर दिया गया है. इससे उम्मीद की जा रही है कि आगामी मानसून में करौलीवासियों को जलभराव जैसी समस्याओं से राहत मिलेगी. स्थानीय लोगों का मानना है कि यदि इन दरवाजों को नियमित देखरेख और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए तो यह करौली के लिए न सिर्फ गर्व का विषय रहेगा, बल्कि पर्यटन और स्थानीय रोजगार को भी बढ़ावा मिलेगा. शहर की ये ऐतिहासिक धरोहरें संरक्षण की अपेक्षा में हैं और प्रशासन से इनके संरक्षण की दिशा में ठोस पहल की उम्मीद की जा रही है.