द्रौपदी मुर्मू: बेबाक राय रखने और चुनौतियों से कभी हार न मानने वाली शख्सियत, दिव्यांगों से विशेष स्नेह


राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
– फोटो : पीटीआई
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द्रौपदी मुर्मू देश की दूसरी महिला और पहली आदिवासी राष्ट्रपति हैं। वह अपनी बेबाक राय और महिला सशक्तीकरण की खुली हिमायत के लिए पहचानी जाती हैं। मुर्मू बृहस्पतिवार को अपने कार्यकाल के दो सफल वर्ष पूर्ण कर रही हैं। ओडिशा के मयूरभंज के छोटे से गांव से राष्ट्रपति पद तक का सफर तय करने वाली द्रौपदी मुर्मू अपने व्यवहार और महिलाओं की दुश्वारियों को दूर कराने से लेकर अपने स्वाभिमान को सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने से नहीं रुकती हैं। यही वजह है कि देश के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान में महिला शौचालय की बदहाली पर वह सार्वजनिक रूप से प्रबंधन को न केवल परामर्श देती हैं, बल्कि यह भी कहती हैं कि देश के संस्थानों के लिए मॉडल होने वाले ऐसे शैक्षणिक स्थलों पर यदि महिलाओं के लिए उनकी जरूरतों की पूर्ति के लिए कॉमन रूम व शौचालय का ऐसा अव्यवस्थित ढांचा होगा, तो वह कैसे रोल मॉडल बनने का दावा करेंगे।
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अवसाद से निकलकर शिखर तक
द्रौपदी मुर्मु दूसरी राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने अपना जीवन शिक्षक के रूप में शुरू किया। प्राथमिक विद्यालयों में अलग-अलग विषयों को पढ़ाने वालीं मुर्मू ने निजी जीवन में तमाम चुनौतियों को पार किया है। संथाल परिवार में जन्मी मुर्मू छोटे से स्कूल में पढ़ी हैं। उन्होंने पति व दोनों बेटों को एक ही कालखंड में खोया है। ऐसे में मानसिक अवसाद और जीवन की दुश्वारियां को पार कर चट्टान की तरह सबला के रूप में खुद को स्थापित किया।
हर खास और आम के लिए खोले द्वार
मुर्मू के दो साल के कार्यकाल में तीन राष्ट्रपति आवासों में नागरिकों की भागीदारी एक वर्ष के दौरान 18 लाख से अधिक रही है। उनके नई दिल्ली स्थित आवास से लेकर, सिकंदराबाद व मशोबरा में राष्ट्रपति आवासों के द्वार हर आम व खास आदमी के लिए खोल दिए गए हैं।