देश में 68.5 फीसदी घरेलू कामगार बीमार
नई दिल्ली, प्रभात कुमार। देश में 68.5 फीसदी घरेलू कामगार किसी न किसी बीमारी से पीड़ित हैं। अधिकांश पीठ में दर्द, घुटने और एड़ी के जोड़ों के टूटने सहित वर्षों से चली आ रही पुरानी बीमारियों से ग्रसित हैं। इतना हीं नहीं, करीब 97 फीसदी कामगारों को दुर्व्यवहार का भी सामना करना पड़ता है।
इसका खुलसा, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के सहयोग से केंद्रीय विश्विद्यालय, तामिलनाडु द्वारा किए गए सर्वे रिपोर्ट से हुआ है। केंद्रीय विश्वविद्यालय ने ‘दक्षिण और उत्तर-पूर्व भारत में घरेलू कामगार : सम्मान और अधिकार के परिप्रेक्ष्य से परिस्थितिजन्य विश्लेषण शीर्षक से यह सर्वे किया था। विश्वविद्यालय में महामारी विज्ञान और सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. लेखा डी. भट की अगुवाई में यह शोध किया गया।
क्या कहती है रिपोर्ट
1. दर्द सहने को मजबूर
बीमारी से पीड़ित होने की जानकारी देने वाले कामगारों में सबसे अधिक 28.3 फीसदी घुटने और एड़ियों के जोड़ों के टूटने से परेशान हैं। वहीं, 19.5 फीसदी पीठ दर्द और शेष किसी न किसी पुरानी बीमारियों से ग्रसित हैं।
2. रिश्तेदारों पर निर्भर
58.2 फीसदी कामगार रिश्तेदारों पर निर्भर हैं, जबकि महज 13.3 फीसदी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा पाते हैं और नियोक्ताओं से न्यूनतम सहायता मिलती है। 42 फीसदी के पास जमीन है, जो ज्यादातर पुरुषों के नाम पर पंजीकृत है।
3. अपमान झेलना पड़ रहा
83 फीसदी घरेलू कामगार अपमानित महसूस करते हैं। 97 फीसदी कामगारों ने बताया कि उन्हें मौखिक दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है, 98 फीसदी को अपमानजनक भाषा का सामना करना पड़ता है।
4. 40 साल से अधिक उम्र
दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत में घरेलू कामगारों की औसत आयु 40.5 वर्ष है, जबकि उनका अनुभव पांच से 45 वर्ष के बीच है। ये आंकड़े कम सामाजिक गतिशीलता को दर्शाता है। सर्वें में शामिल होने वाले 92 फीसदी शहरी क्षेत्रों और आठ फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले कामगार हैं। 37.2 फीसदी हाई स्कूल पास हैं जबकि 20 फीसदी 12वीं कक्षा तक पढ़े हैं।
5. यौन उत्पीड़न के शिकार
33 फीसदी कामगारों ने बताया कि उनका यौन उत्पीड़न हुआ है। 92 फीसदी कामगार कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न रोकने के लिए 2013 में बने कानून के बारे में नहीं जानते।
रोजगार के रूप में मान्यता देने की सिफारिश
इस रिपोर्ट में घरेलू कामगारों के जीवन को सुधारने के लिए ‘घरेलू काम को वैध रोजगार के रूप में मान्यता देने और श्रम अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक नीति और कानूनी बनाने की सिफारिश की गई है।