दिल्ली की सर्दी भी शर्मा जाए, ऐसी होती है ठंड, जानिये -50 डिग्री में डटे जवानों की जंग

Siachen explainer : सर्दियां साल में 3 महीने से ज्यादा की नहीं होती. इसमें ही पूरा उत्तर भारत ठिठुर जाता है. यहां तापमान कभी माइनस में नहीं जाता. इसके बावजूद लोग ठंड को दमभर कोसते हैं. लेकिन क्या आपको पता है भारत में एक ऐसी जगह है, जहां साल के बारह महीने जमाने वाली ठंड रहती है. तापमान ऐसा कि सुनकर दिल्ली की ठंड भी शर्मा जाए. दिल्ली में तापमान दिसंबर जनवरी में सिंगल डिजिट तक ही रहता है. लेकिन यहां तो तापमान गिर कर माइनस 40 से 50 डिग्री तक पहुंच जाता है. हवा उसे माइनस 5 से माइनस 10 डिग्री तक और गिरा देता है. जी हां, यह सियाचिन है. दुनिया का सबसे ऊंचा रणक्षेत्र… यहां 1984 से भारतीय सेना ऑपरेशन मेघदूत के तहत लगातार ग्लेशियर पर तैनात है.
सुपर सोल्जर की कहानी
इस ग्लेशियर में सैनिकों का सबसे बड़ा दुश्मन होता है मौसम, जिससे उन्हें रोज लड़ना पड़ता है. भारतीय सेना के सैनिकों की ग्लेशियर में तैनाती तीन महीने की होती है. रोज के दिन की शुरुआत होती है हैंड परेड फुट परेड से. उन्हें हाथों और पैरों को गर्म पानी में डुबोकर रखना पड़ता है ताकी ब्लड सर्कुलेशन ठीक हो सके. टेंट से बाहर निकलने से पहले स्पेशल विंटर क्लोदिंग को लेयर में पहनकर ही बाहर आना होता है. डाउन फेदर की जैकेट, लोअर, चेहरे पर धूप ना लगे इसके लिए पूरे मुहं को ढका जाता है. आंखों पर अल्ट्रा वायलेट रोशनी से बचाव के लिए चश्मा पहनना जरूरी होता है. सूरज की रोशनी बर्फ पर पड़कर आखों पर आती है जो स्नो ब्लाइंडनेस का कारण बन जाती है. बिना दस्ताने के अगर किसी भी धातु को हाथ लगाया तो चमड़ी उस पर चिपक जाती है. मेटल बाइट से बचने के लिए बड़ी सावधानी से अपने हथियारों का इस्तेमाल और देखभाल करना पड़ता है. यहां तक कि शेव भी नहीं की जाती है सियाचिन में.
मर जाती है भूख-प्यास
सियाचिन में सबसे जरूरी है अपनी सेहत का ख्याल रखना. ग्लेशियर में तैनात सैनिकों की भूख मर जाती है. ठंड की वजह से पानी की प्यास खत्म हो जाती है. शरीर में न्यूट्रीशन की कमी ना हो इसका खूब ख्याल रखना होता है. यहां हाई कैलोरी वाली डाइट लेनी जरूरी है. सेना यहां के लिए खास स्पेशल राशन सैनिकों को देती है. ऑक्सीजन कम है तो पाचन तंत्र पर बुरा असर पड़ता है. डीहाइड्रेशन से बचाने के लिए गर्म पानी या जूस पीते रहना जरूरी है.
ऊंचाई ज्यादा होने के चलते खून गाढ़ा होने लगता है तो इसका खास ख्याल रखना होता है. कमॉडिंग ऑफिसर अपनी यूनिट में अपने सैनिकों के खाने-पीने का खास ख्याल रखना होता है. जरा सी लापरवाही जानलेवा हो सकती है. मौसम कब बिगड़ जाए कहना मुश्किल है. हेलिकॉप्टर से भी रेस्क्यू करना मुश्किल हो जाता है. ताजा राशन सिर्फ गर्मियों में ही नसीब होता है. सर्दियों में पोस्ट पूरी तरह बेस से कट जाते है. सिर्फ पैकेट फूड ही खाना पड़ता है. पानी पीने के लिए बर्फ पिघलाना पड़ता है.
रात में निपटाए जाते है सारे काम
लोग रात को सोते हैं और दिन में काम करते हैं. सियाचिन में इसका उलटा है. यहां रात में सारे काम निपटाए जाते हैं. सुनकर हैरानी जरूर होगी, लेकिन यह सच है. वजह है दिन में सूरज निकलने के बाद गर्मी से हिमस्खलन और ग्लेशियर में दरारें खुलने का ख़तरा बढ़ जाता है. सभी महत्वपूर्ण काम जैसे कि लिंक ड्यूटी यानी पोस्ट पर बेस कैंप से सामान लाना ले जाना, पेट्रोलिंग करना सुबह सूरज निकलने से पहले ही पूरा करना होता है. बर्फबारी के वक्त तो पोस्ट पर रात भर जागकर बर्फ को हटाते रहना पड़ता है. रात को सोते वक्त इसका भी ध्यान रखना होता है कि बुखारी तो नहीं जल रही है , उससे निकलने वाली गैस जानलेवा हो सकती है.
स्पेशल क्लोदिंग के बिना टिक पाना मुश्किल
सियाचिन में तैनात सैनिकों के लिए स्पेशल कपड़े दिए जाते है. 9000 फिट की ऊंचाई वाले इलाकों को हाई एल्टीट्यूड एरिया कहा जाता है. यहां तैनात होने वाले सभी सैनिकों को एक्सट्रीम क्लाइमेट क्लोदिंग (ECC) जारी होती है. हर सैनिक को जैकेट, गर्म लोअर, स्नो बूट, यूवी रे चश्मे सहित कुल 17 आइटम दिए जाते हैं. 13 ग्रुप आईटम होते हैं जिसमें टेंट, कैरोसिन हीटर सहित वो चीजें शामिल हैं. 15000 फिट से ऊंचाई वाले इलाकों को सुपर हाई एल्टीट्यूड में माना जाता है. जिसमें सियाचिन सहित नॉर्थ सिक्किम, कारगिल, बटालिक की पहाड़ियां आती है. इस इलाक़े में तैनात होने वाले सैनिकों को स्पेशल क्लोदिंग एंड माउंटेनियरिंग इक्विपमेंट (SCME) दिए जाते हैं. हर सैनिक को 18 आईटम और यूनिट को 12 ग्रुप आईटम दिए जाते हैं. 2020 में गलवान की घटना के बाद बड़ी तेजी में सैनिकों की तैनात हाई एल्टीट्यूड एरिया में किया गया था. उस वक्त भारतीय सेना के पास इन क्लोदिंग की कमी पेश आई थी. जिसे बाद में इमरजेंसी खरीद के तहत पूरी की गई. बहरहाल सियाचिन की कहानी सुनने वालों को अब अपने यहां की ठंड में महसूस ही नहीं होगी.
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FIRST PUBLISHED : December 18, 2024, 23:17 IST