तलाकशुदा मुस्लिम महिला पति से गुजारा भत्ता लेने की हकदार: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- वह CrPC के सेक्शन 125 के तहत दावा कर सकती है

नई दिल्ली3 मिनट पहले
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जस्टिस बीवी नागरत्ना (दाएं) और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने एक मुस्लिम युवक की याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (10 जुलाई) को कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला CrPC की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण की हकदार है। इसके लिए वह याचिका दायर कर सकती है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने एक मुस्लिम युवक की याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 धर्मनिरपेक्ष कानून पर हावी नहीं होगा।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा- हम इस निष्कर्ष के साथ अपील खारिज कर रहे हैं कि CrPC की धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि केवल विवाहित महिलाओं पर।
बेंच ने पूछा कि क्या याचिकाकर्ता ने इद्दत अवधि के दौरान पत्नी को कुछ भुगतान किया था? इस पर याचिकाकर्ता ने कहा- 15,000 रुपए का ड्राफ्ट ऑफर किया गया था, लेकिन पत्नी ने नहीं लिया।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था- मुस्लिम पति को पूरी जिंदगी तलाकशुदा पत्नी की जिम्मेदारी उठानी होगी
इसी साल जनवरी में एक अन्य मामले की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था- तलाकशुदा मुस्लिम महिला दोबारा शादी कर लेती है, तब भी वह अपने पूर्व पति से तलाक में महिला के अधिकारों का सुरक्षा कानून (Muslim Women Protection of Rights on Divorce Act 1986, MWPA) के तहत गुजारा भत्ता पाने की हकदार है।
TOI के मुताबिक, जस्टिस राजेश पाटिल की सिंगल बेंच ने कहा- तलाक की हकीकत अपने आप में पत्नी के लिए धारा 3(1)(ए) के तहत भरण-पोषण का दावा करने के लिए पर्याप्त है। इसके साथ ही कोर्ट ने पूर्व पत्नी को एकमुश्त गुजारा भत्ता देने के दो आदेशों पर पति की चुनौती को खारिज कर दिया। कोर्ट ने पति को अपनी पूर्व पत्नी को 9 लाख रुपए गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है।

कोर्ट ने कहा- भले ही तलाकशुदा महिला दोबारा शादी कर ले, गुजारा भत्ता पाने की हकदार
जस्टिस पाटिल ने 2 जनवरी को सुनाए फैसले में कहा था- एक्ट की धारा 3(1)(ए) दोबारा शादी के खिलाफ बिना किसी शर्त के भरण-पोषण का प्रावधान करती है। यह (धारा) गरीबी रोकने और तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के एक्ट के उद्देश्य पर प्रकाश डालती है, भले ही महिला ने दोबारा शादी क्यों ना कर ली हो।
‘मुस्लिम पुरुष तलाक के बाद भी जिंदगीभर पूर्व पत्नी की जिम्मेदारी उठाए’
जस्टिस पाटिल ने साल 2001 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि भरण-पोषण देने के लिए मुस्लिम पति का दायित्व न केवल तय समय सीमा के लिए, बल्कि तलाकशुदा पत्नी की पूरी जिंदगी के लिए है। अदालत ने साफतौर पर कहा कि पति को तय की गई समय सीमा के भीतर गुजारा भत्ता देना होगा।
जस्टिस पाटिल ने कहा है कि MWPA में एक बार दी गई भरण-पोषण राशि को बढ़ाने के प्रावधानों की कमी है। गुजारा-भत्ता की राशि पहले ही तय कर दी गई है। अब पत्नी भले ही भविष्य में दोबारा शादी कर लेती है, लेकिन इससे अदालत द्वारा आदेशित एकमुश्त राशि पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
यह था मामला
कपल की शादी 9 फरवरी 2005 को हुई थी। 1 दिसंबर 2005 को उनके घर बेटी का जन्म हुआ। पति नौकरी के लिए सऊदी अरब चला गया। जून 2007 में महिला बेटी को लेकर रत्नागिरी के चिपलुण में अपने माता-पिता के घर रहने आ गई।
महिला ने CRPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का आवेदन दायर किया, इस पर पति ने अप्रैल 2008 में रजिस्टर्ड डाक से उसे तलाक दे दिया। चिपलुण के प्रथम श्रेणी न्यायालय ने महिला का भरण-पोषण आवेदन खारिज कर दिया। इसके बाद महिला ने MWPA के तहत नया आवेदन दायर किया।
इस पर अदालत ने पति को बेटी के लिए गुजारा भत्ता और पत्नी को एकमुश्त राशि देने का आदेश दिया। पति ने आदेशों को चुनौती दी और पत्नी ने भी बढ़ी हुई राशि की मांग करते हुए आवेदन दायर किया। सेशन कोर्ट ने पत्नी का आवेदन आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए एकमुश्त भरण-पोषण राशि बढ़ाकर 9 लाख रुपए कर दी। इस पर पति ने वर्तमान पुनर्विचार आवेदन दाखिल किया।
कार्यवाही के दौरान यह दिखाया गया कि पत्नी ने अप्रैल 2018 में दूसरी शादी की थी, लेकिन अक्टूबर 2018 में फिर से तलाक हो गया। पति की तरफ से तर्क दिया गया कि दूसरी शादी करने के बाद महिला अपने पहले पूर्व पति से भरण-पोषण की हकदार नहीं है। महिला केवल अपने दूसरे पूर्व पति से ही गुजारा भत्ता मांग सकती है।
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