Published On: Sun, Aug 4th, 2024

ट्रांसप्लांट के लिए ऑर्गन ट्रांसपोर्टेशन को लेकर गाइडलाइन जारी: एयरलाइंस जल्दी टेकऑफ-लैंडिंग की अपील कर सकती है; लेट चेक-इन पर डॉक्टर्स को छूट


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नई दिल्ली47 मिनट पहले

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केंद्र सरकार ने ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए मानव अंगों को भेजने और लाने को लेकर पहली बार गाइडलाइन जारी की है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने हवाई, ट्रेन, मेट्रो, रोड और शिपिंग रूट से ऑर्गन ट्रांसपोर्टेशन को लेकर शनिवार (3 अगस्त) को एसओपी जारी की।

एयर रूट से ऑर्गन ट्रांसपोर्टेशन के दौरान फ्लाइट्स में विशेष सुविधाएं मिलेंगी। मानव अंगों को लेकर जाने वाली एयरलाइंस एयर ट्रैफिक कंट्रोल से फ्लाइट के जल्दी टेकऑफ-लैंडिंग और फ्रंट सीट देने की अपील कर सकती है।

एयरलाइंस ऑर्गन ले जाने वाले डॉक्टर्स को टिकट बुकिंग में प्राथमिकता देने और देर से चेक-इन पर छूट देने की भी अपील कर सकती है। एसओपी के अनुसार, फ्लाइट कैप्टन उड़ान भरने के दौरान घोषणा कर सकता है कि विमान में मानव अंगों को ले जाया जा रहा है।

ऑर्गन ट्रांसपोर्टेशन ​​​​​​की जरूरत तक पड़ती है, ​जब ऑर्गन डोनर और ऑर्गन रिसीवर, दोनों एक शहर के भीतर या अलग-अलग शहरों में अलग-अलग अस्पतालों में हों। तब एक जीवित अंग को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल पहुंचाया जाता है।

ऑर्गन ट्रांसपोर्टेशन को लेकर गाइडलाइन के अहम प्वॉइंट्स…

  • एसओपी के मुताबिक, सोर्स एयरपोर्ट (जहां से ऑर्गन ले जा रहा है) डेस्टिनेशन एयरपोर्ट (जहां ऑर्गन पहुंचेगा) को ऑर्गन ट्रांसपोर्टेशन की जानकारी देगा। ताकि सही तरीके से पूरा प्रोसेस हो सके।
  • ऑर्गन को एयरक्राफ्ट से एम्बुलेंस तक ले जाने के लिए ट्रोली का इंतजाम एयरपोर्ट ​​​और एयरलाइन स्टाफ करेगा। अगर एम्बुलेंस रनवे तक जा सकता है, तो एयरलाइन क्रू ऑर्गन बॉक्स ले जाने वाले डॉक्टर्स को सीढ़ियों से सीधे रनवे पर उतरने और इंतजार कर रही एम्बुलेंस में जाने के लिए मदद करेगा।
  • सोर्स एयरपोर्ट पर ऑर्गन बॉक्स को एम्बुलेंस से फ्लाइट में ले जाने और डेस्टिनेशन एयरपोर्ट पर फ्लाइट से एम्बुलेंस कर पहुंचाने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया जाएगा।
  • एम्बुलेंस या किसी गाड़ी से ऑर्गन को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जाने पर भी अधिकारियों या एजेंसियों की अपील पर ग्रीन कॉरिडोर की इजाजत दी जा सकती है। “वन ट्रिगर सिस्टम” यानी ग्रीन कॉरिडोर बनाने के लिए ऑर्गन एलोकेशन अथॉरिटी (NOTTO/ROTTO/SOTTO) से इजाजत ली जा सकती है।
  • हर राज्य/शहर में ऑर्गन ट्रांसपोर्टेशन के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाने से जुड़े मुद्दों को संभालने के लिए पुलिस विभाग से एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जा सकता है। नोडल अधिकारी ग्रीन कॉरिडोर के दौरान अधिकार क्षेत्र, अप्रूवल, सुरक्षा चिंताओं आदि से जुड़े मुद्दों को सुलझाने में मदद करेगी।
  • मेट्रो ट्रैफिक कंट्रोल मानव अंगों को ले जा रही मेट्रो को प्राथमिकता दे सकती है। एसओपी में कहा गया है कि मेट्रो सुरक्षा कर्मचारी ऑर्गन बॉक्स ले जाने वाली क्लिनिकल टीम के मेट्रो स्टेशन पर चढ़ने तक उनके साथ रहेंगे। मेट्रो का एक अधिकारी क्लिनिकल टीम को मेट्रो में ले जा सकता है और ऑर्गन बॉक्स के लिए जरूरी जगह की घेराबंदी कर सकता है।
  • सिक्योरिटी जांच में देरी से बचने के लिए मेट्रो अथॉरिटी सिक्योरिटी होल्ड एरिया (SHA) और मेट्रो कर्मियों को सूचना देगा, ताकि ऐसे ऑर्गन को ले जाने के लिए सही व्यवस्था की जा सके।
  • एयर रूट और मेट्रो की तरह सड़क, ट्रेनों और शिपिंग के माध्यम से अंगों को ले जाने की सुविधा के लिए भी एसओपी जारी किए गए हैं। एसओपी में कहा गया है कि ऑर्गन बॉक्स को ट्रांसपोर्टेशन के दौरान सतह से 90 डिग्री पर सीधा रखा जाना चाहिए। साथ ही ऑर्गन बॉक्स पर “हैंडल विद केयर” का लेबल लगाया जा सकता है। ज्यादा सुरक्षा के लिए ऑर्गन बॉक्स को सीट बेल्ट से भी सिक्योर किया जा सकता है।

भारत में हर साल 5 लाख लोगों को ऑर्गन ट्रांसप्लांट की जरूरत
ऑर्गन डोनेशन इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर साल 500,000 लोगों को ऑर्गन ट्रांसप्लांट की जरूरत है, जबकि सिर्फ 52,000 ऑर्गन उपलब्ध हैं। हर साल 200,000 कॉर्निअल डोनेशन की जरूरत है ताकि नेत्रहीनों के जीवन में उजाला हो सके, लेकिन उपलब्ध सिर्फ 50,000 हैं। प्रत्येक 4 में से 3 व्यक्ति आंखों की रोशनी पाने के लिए डोनेशन का इंतजार करता है।

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