जो बात बड़े शहरों में नहीं हो पाई… वो इस छोटे गांव ने कर दिखाया! जानिए कैसे बनी मिसाल?

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Jhunjhunu News: झुंझुनूं के सिथल गांव में सरपंच संजू चौधरी की पहल से बर्तन बैंक की शुरुआत हुई है. यह पर्यावरण संरक्षण का व्यावहारिक मॉडल बन रहा है. ग्रामीण डिस्पोजेबल बर्तनों के बजाय स्टील बर्तनों का उपयोग कर र…और पढ़ें

झुंझुनूं के सिथल में शुरू हुआ बर्तन बैंक, पर्यावरण संरक्षण में होगी अहम भूमिका,
हाइलाइट्स
- सिथल गांव में बर्तन बैंक की शुरुआत हुई.
- बर्तन बैंक से ग्रामीणों को आर्थिक सहयोग मिल रहा है.
- पर्यावरण संरक्षण में बर्तन बैंक की अहम भूमिका.
झुंझुनूं. पर्यावरण संरक्षण का संदेश हर किसी के द्वारा दिया जाता है. लेकिन इस संदेश में दी गई जानकारी पर अमल करना एक बहुत बड़ी बात होती है. झुंझुनूं की ग्राम पंचायत सिथल में केवल संदेश ही नहीं दिया जा रहा, बल्कि उस पर काम भी किया जा रहा है. हाल ही में झुंझुनूं के सिथल गांव में एक बर्तन बैंक की शुरुआत की गई है. यह पहल पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहद उपयोगी साबित हो रही है. साथ ही ग्रामवासियों को अनावश्यक खर्चों से मुक्ति भी मिल रही है.
झुंझुनूं के उदयपुरवाटी पंचायत समिति की ग्राम पंचायत सिथल की सरपंच संजू चौधरी ने इस पहल की शुरुआत की है. उन्होंने बताया कि झुंझुनूं जिले की 35 ग्राम पंचायतों में से उदयपुरवाटी पंचायत समिति की तीन ग्राम पंचायतों का चयन बर्तन बैंक योजना के लिए किया गया. सिथल गांव में 400 सेट बर्तन उपलब्ध कराए गए हैं. इन सेटों में थाली, तीन कटोरी, गिलास और चम्मच शामिल हैं. सरपंच के अनुसार यह बर्तन पर्यावरण को सुरक्षित रखने में सहायक होंगे.
गांव में बर्तनों की बुकिंग जोरों पर
आज ग्रामीण बड़े उत्साह से इन बर्तनों को कार्यक्रमों में उपयोग कर रहे हैं. यहां तक कि गांव में इन बर्तनों की अग्रिम बुकिंग भी की जा रही है. सरपंच संजू चौधरी ने बताया कि पहले डिस्पोजेबल सामग्री का उपयोग स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता था. उन्हें जलाने या फेंकने से पर्यावरण प्रदूषित होता था. साथ ही बेसहारा पशुओं के इन्हें खा लेने से उन्हें भी नुकसान होता था. अब ग्राम पंचायत को इन समस्याओं से राहत मिलेगी.
स्वयं सहायता समूह देख रहा बर्तनों की व्यवस्था
बर्तन सेट की देखरेख स्वयं सहायता समूह की संचालक हाफिजन द्वारा की जा रही है. उन्होंने बताया कि एक सेट का तीन रुपये चार्ज लिया जाता है. लेकिन जो लोग पैसे देने में असमर्थ होते हैं, उन्हें ये बर्तन निशुल्क दिए जाते हैं. बर्तनों से होने वाली आमदनी का उचित रखरखाव किया जाता है.
ग्रामीणों को हो रहा सीधा लाभ
गांव के निवासी लोकेश ने बताया कि उन्होंने अपने बेटे का जन्मोत्सव मनाने के लिए ये बर्तन उपयोग किए. सरपंच से सूचना मिलने के बाद उन्होंने बर्तन बैंक से रसीद कटवाकर यह बर्तन उपयोग में लिए. लोकेश के अनुसार उन्हें इससे दस हजार रुपये की बचत हुई. साथ ही डिस्पोजल का उपयोग नहीं करने से स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा और पर्यावरण को भी प्रदूषण से बचाया जा सका.
लंबी अहीर की प्रेरणा से बना मॉडल
गौरतलब है कि झुंझुनूं के गांव लंबी अहीर की सरपंच नीरू यादव ने राजस्थान में सबसे पहले बर्तन बैंक की शुरुआत कर एक मिसाल कायम की थी. उसी प्रेरणा से अब पूरे राजस्थान के गांवों में बर्तन बैंक स्थापित किए जा रहे हैं. यह पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक प्रभावी कदम बनता जा रहा है.