जयराम का ग्रेट निकोबार परियोजना को लेकर पर्यावरण मंत्री पर पलटवार
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने फिर से 10 पृष्ठों का जवाबी पत्र लिखा कहा, ग्रेट निकोबार दुनिया के सबसे अधिक भूकंप संभावित क्षेत्रों में से एक में स्थित
नई दिल्ली, एजेंसी। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने मंगलवार को कहा कि ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन अध्ययन को यह सुनिश्चित करने के लिए तैयार किया गया था कि इसे नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित प्रारूप में मंजूरी दी जा सके। रमेश ने पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को प्रस्तावित ‘ग्रेट निकोबार इन्फ्रा प्रोजेक्ट को लेकर बीते 10 अगस्त को पत्र लिखा था जिसके जवाब में यादव ने उन्हें जवाबी पत्र लिखा था। अब रमेश ने फिर से 10 पृष्ठों का जवाबी पत्र लिखा है।
यादव ने कहा था कि रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ग्रेट निकोबार परियोजना को मंजूरी संभावित पारिस्थितिक प्रभावों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद दी गई है और इससे जनजातीय आबादी पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। मंत्री के पत्र के जवाब में लिखे ताजा पत्र में रमेश ने कहा, ‘मंत्रालय का कहना है कि इस परियोजना को पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) संबंधी अध्ययन के बाद मंजूरी दी गई है। फिर भी, ईआईए की जांच विभिन्न आपत्तियों का उल्लेख करती है।
उन्होंने कहा, ‘बंदरगाह बनाने के मकसद से “गैलाथिया वन्यजीव अभयारण्य” को जनवरी, 2021 में गैर-अधिसूचित किया गया था और लगभग 130 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र को हटाने का प्रस्ताव अक्तूबर 2020 में भेजा गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित प्रारूप में परियोजना की मंजूरी सुनिश्चित करने के लिए ईआईए को प्राथमिकता दी गई है।
पूर्व पर्यावरण मंत्री रमेश के अनुसार, मंत्रालय पर्यावरण प्रबंधन योजना (ईएमपी) की तैयारी का हवाला देकर भी परियोजनाओं का बचाव करता है। हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अंतिम ईआईए रिपोर्ट समिति को सौंपी गई थी तथा वह किसी भी ठोस समाधान वाले उपायों या मजबूत ईएमपी से रहित थी। समिति की टिप्पणियों के बाद ही समाधान के उपाय किए गए थे। इन रिपोर्टों में अवैज्ञानिक और अप्रयुक्त शमन उपाय शामिल हैं, संरक्षण और प्रबंधन योजना काफी हद तक स्थानांतरण पर निर्भर है।
पूर्व पर्यावरण मंत्री ने दावा किया, ‘ग्रेट निकोबार द्वीप की जनजातीय परिषद ने इस परियोजना पर आपत्ति व्यक्त की। उनका यह भी कहना है कि अधिकारियों ने पहले भ्रामक जानकारी के आधार पर अनापत्ति पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए जल्दबाजी की थी। जनजातीय परिषद ने भी अनापत्ति पत्र निरस्त कर दिया है। परियोजना से प्रभावित समुदाय “शोम्पेन और निकोबारी” बेहद हाशिए पर हैं और उन्हें ऐतिहासिक रूप से और आज तक अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के नीति निर्धारण तंत्र से बाहर रखा गया है।”
रमेश का कहना है कि ईआईए ऐसे अन्य अध्ययनों को भी आसानी से नजरअंदाज कर देता है जो स्वतंत्र रूप से इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि ग्रेट निकोबार और सुमात्रा के क्षेत्र में 20-25 वर्षों के भीतर उच्च तीव्रता के भूकंप का अनुभव होने की अत्यधिक आशंका है।
उन्होंने कहा, ‘ग्रेट निकोबार दुनिया के सबसे अधिक भूकंप संभावित क्षेत्रों में से एक में स्थित है, और ये भूकंप इन बुनियादी परियोजनाओं को अपूरणीय क्षति पहुंचा सकते हैं। मुझे आशा है कि मैंने जो बातें की हैं उन्हें आप एक परियोजना से जुड़ी चर्चा में रचनात्मक योगदान के रूप में देखेंगे जिसके दूरगामी पर्यावरणीय और मानवीय परिणाम होंगे।