Published On: Thu, Jul 25th, 2024

‘जब मैं गांव में थी, लकड़ी पर बनता था खाना, मेरे पिताजी सूखी लकड़ी काटने से पहले…’,मुर्मू ने सुनाया बचपन का किस्‍सा


Draupadi Murmu: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जब स्‍कूली बच्‍चों से मिलीं, तो उन्‍होंने उनसे दिल खोलकर बातचीत की. इस दौरान उन्‍होंने अपने जीवन के कई किस्‍से भी सुनाए. मुर्मू ने गांव से दिल्‍ली आने का भी जिक्र किया. द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि मैं तो गांव में थी, लेकिन जब दिल्‍ली आई, तो सब मास्‍क लगाकर घूम रहे थे. इससे पता चलता है कि वायु प्रदूषण कितना है और वायु प्रदूषण ग्‍लोबल वार्मिंग जैसी चीजें रोकने के लिए हम सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे. उन्‍होंने स्‍कूली बच्‍चों से कई सवाल भी पूछे. उनका जवाब सुनकर मुर्मू ने कहा कि आपकी बात सुनकर ऐसा लग रहा है कि हम आने वाले भविष्‍य में इन चीजों पर काबू जरूर पा लेंगे.

जब मैं गांव में थी…
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने स्‍कूली बच्‍चों को अपना किस्‍सा सुनाते हुए बताया कि उनका बचपन गांव में बीता. उन्‍होंने 7वीं तक की पढ़ाई गांव में ही की. मुर्मू ने बच्‍चों से कहा कि अभी तो गैस में खाना बनाते हैं, लेकिन उन दिनों गैस नहीं हुआ करती थी. लकड़ी से ही खाना बनाते थे. मुर्म ने बताया कि उनके गांव के पास ही एक जंगल था, जहां से उनके माता पिताजी सूखी लकड़ियां चुनकर लाया करते थे. मुर्मू ने कहा कि उनमें से कुछ लकड़ियां मोटी होती थीं, तो कुछ बड़ी होती थी. ऐसे में उनको जलाने योग्‍य बनाने के लिए काटना पड़ता था. इस दौरान उन्‍होंने देखा कि जब भी उनके पिताजी किसी सूखी लकड़ी को काटते थे या चोट पहुंचाते थे, तो पहले वह उस पेड़ को नमन करते थे. इस पर उन्‍होंने अपने पिताजी से पूछा कि आप सूखी लकड़ी को क्‍यों नमन करते हैं, जिस पर उनके पिताजी ने उन्‍हें बताया कि वह उस लकड़ी को इसलिए नमन करते हैं, क्‍योंकि वह लोग पेड़ को ही पूर्वज मानते हैं. इसके अलावा वह उस पेड़ से क्षमायाचना करते हैं कि माफ कीजिएगा. आपने हमारी जीवन भर सेवा की, लेकिन हमारे पास अपने जीवन के लिए इसके अलावा कोई विकल्‍प नहीं है, इसलिए मैं आपको काट रहा हूं.

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