Published On: Mon, May 26th, 2025

जदयू नेता ने की ताड़ी से प्रतिबंध हटाने की मांग: JDU ऑफिस के बाहर ही मुख्यमंत्री नीतीश के सामने कहा, CM ने दिया आश्वासन – Patna News



मुख्यमंत्री नीतीश से बात करते मुन्ना चौधरी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज सोमवार को अचानक जनता दल (यूनाइटेड) के प्रदेश कार्यालय पहुंचे, जहां उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाकात की।

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इस दौरान जदयू के अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष मुन्ना चौधरी ने मुख्यमंत्री को रोक कर बिहार में ताड़ी पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग की।

मुन्ना चौधरी ने मुख्यमंत्री के सामने अपनी बात रखते हुए कहा कि वे पासी समाज से आते हैं और ताड़ी का जीवन व आजीविका से गहरा संबंध है।

उन्होंने बताया कि ताड़ी के पेड़ से गिरने की घटनाओं में अब तक 500 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन इन मामलों में पीड़ित परिवारों को मुआवजा नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि यह समाज के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है, और सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।

ताड़ी को राज्य की शराबबंदी नीति से अलग करने की मांग

मुन्ना चौधरी ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि ताड़ी को राज्य की शराबबंदी नीति से अलग किया जाए, क्योंकि ताड़ी में अल्कोहल की मात्रा नहीं होती है।

उन्होंने कहा कि ताड़ी एक पारंपरिक पेय है और इसे शराब की श्रेणी में रखना न सिर्फ अनुचित है, बल्कि इससे ताड़ी पर निर्भर समुदायों की आजीविका पर भी असर पड़ा है।

उन्होंने यह भी बताया कि वे पहले भी कई बार मुख्यमंत्री से मिलकर ताड़ी को शराबबंदी से बाहर करने की मांग कर चुके हैं, और जब भी अवसर मिलता है, वे यह मुद्दा उठाते रहेंगे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा नीरा के प्रचार-प्रसार की व्यवस्था भी उचित ढंग से नहीं की गई है, जिससे इस विकल्प का लाभ लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुन्ना चौधरी की बातों को गंभीरता से सुना और प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा को निर्देश दिया कि वे पूरे मामले की जानकारी लें। मुन्ना चौधरी को उनके साथ बैठक में शामिल करें। इससे संकेत मिलता है कि सरकार इस मुद्दे पर विचार कर सकती है।

शराबबंदी से ताड़ी को हटाने की लगातार मांग की जाती रही है

बिहार में 2016 से शराबबंदी लागू है, जिसके तहत ताड़ी सहित अन्य पेयों पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। हालांकि, ताड़ी को लेकर कई सामाजिक संगठनों और समुदायों की ओर से समय-समय पर यह मांग उठती रही है कि इसे शराब की श्रेणी से अलग कर पारंपरिक पेय के रूप में मान्यता दी जाए।

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