छतरी, कलश और मोक्ष… यहां अग्निकुंड परिक्रमा से पूरी होती हर मुराद, एक दिन में मिल जाता है वर्षों का फल!

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Bhilwara Famous Temple: भीलवाड़ा के ग्यारस माता मंदिर में निर्जला एकादशी पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी. महिलाएं निर्जल उपवास रखकर पंखा, छतरी और कलश अर्पित करती हैं. यह मंदिर वर्ष में केवल एक दिन खुलता है और मोक्…और पढ़ें

भीलवाड़ा का प्राचीन ग्यारस माता मंदिर
हाइलाइट्स
- भीलवाड़ा का ग्यारस माता मंदिर प्राचीन है.
- निर्जला एकादशी पर महिलाएं निर्जल व्रत रखती हैं.
- पूरे राजस्थान से श्रद्धालु ग्यारस माता के दर्शन को आते हैं.
भीलवाड़ा. वैसे तो आमतौर पर आपने कई देवियों के मंदिर देखे होंगे. लेकिन आज हम आपको निर्जला एकादशी के दिन एक ऐसी देवी मां के मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो भीलवाड़ा में सबसे प्राचीन और इकलौता ग्यारस माता मंदिर है. पूरे साल में केवल एक दिन ऐसा आता है जब भीलवाड़ा ही नहीं बल्कि पूरे राजस्थान से श्रद्धालु, विशेष तौर पर महिलाएं, ग्यारस माता के दर्शन करने के लिए पहुंचती हैं.
पूरे प्रदेश से पहुंचे श्रद्धालु
मंदिर के पुजारी दीपक पराशर ने बताया कि यह मंदिर परशुराम सर्किल के निकट पावर हाउस परिसर में स्थित है. यह भीलवाड़ा शहर का एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है. अल्प सुबह से ही जयपुर, उदयपुर, जोधपुर, राजसमंद, अजमेर सहित प्रदेश भर से श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं. निर्जला एकादशी पर महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं. इस दिन मिट्टी का कलश, छाता, पंखा और फल अर्पित किए जाते हैं. इसके बाद महिलाएं घर की सुख-शांति और मरने के बाद मोक्ष की प्राप्ति की कामना करती हैं.
पुजारी के अनुसार निर्जला एकादशी का अत्यंत धार्मिक महत्व है. मान्यता है कि साल की सभी बारह एकादशियों का फल केवल निर्जला एकादशी करने से प्राप्त हो जाता है. महिलाएं आज के दिन निर्जल रहकर पूरे दिन व्रत रखती हैं.
अखंड ज्योति और अग्निकुंड का महत्व
मंदिर परिसर में एक अग्निकुंड बना हुआ है जहां पर अखंड ज्योति जलती रहती है. मान्यता है कि इस अग्निकुंड की परिक्रमा करने से महिलाओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इसलिए यहां पर महिलाएं परिक्रमा करती हुई नजर आती हैं.
श्रद्धालु महिलाओं की आस्था
श्रद्धालु शकुंतला देवी ने बताया कि आज निर्जला एकादशी है. इस अवसर पर हम ग्यारस माता मंदिर में पूजा अर्चना करने आए हैं. महिलाएं निर्जल रहकर उपवास करती हैं और पूरे दिन व्रत कथा, पूजा-पाठ और भजन करती हैं. इस दिन उपवास रखने से बारह एकादशियों का पुण्य फल एक ही दिन में प्राप्त हो जाता है. हिंदू धर्म में यह एकादशी सबसे अधिक धार्मिक महत्व वाली मानी जाती है.