छठ महापर्व 2024: कर्मनाशा नदी पर यूपी-बिहार का अनोखा संगम, उत्तर प्रदेश से यहां पूजा करने आती हैं महिलाएं


बिहार में कर्मनाशा नदी के घाटों पर पूजा करती हैं यूपी की महिलाएं
– फोटो : अमर उजाला
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लोक आस्था का प्रतीक छठ महापर्व जहां चार दिनों का पावन पर्व है, वहीं इस पर्व पर बिहार और उत्तर प्रदेश के बीच एक अनोखा नजारा देखने को मिलता है। बिहार के कैमूर जिले और उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले को बांटने वाली कर्मनाशा नदी पर छठ के दौरान ऐसा दृश्य देखने को मिलता है, जो दोनों राज्यों की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बन जाता है। इस महापर्व के अवसर पर यूपी की महिलाएं कर्मनाशा नदी पार कर बिहार के छोर पर पहुंचती हैं और वहां छठ पूजा करती हैं।
कर्मनाशा नदी पर छठ का अद्भुत दृश्य
कर्मनाशा नदी के एक ओर यूपी के चंदौली जिले का ककरैत गांव बसा हुआ है और दूसरी ओर बिहार के कैमूर जिले का नुआंव गांव है। इस नदी की दूरी महज 100 मीटर होने के कारण यूपी की महिलाएं इस पावन अवसर पर नदी पार कर बिहार में प्रवेश करती हैं और छठ पूजा करती हैं। इस दृश्य में सांस्कृतिक एवं धार्मिक एकता की झलक दिखाई देती है। जहां कर्मनाशा नदी दोनों राज्यों को भले ही भौगोलिक रूप से अलग करती हो, लेकिन छठ महापर्व के समय ये सीमाएं गौण हो जाती हैं।
छठ पूजा के धार्मिक महत्व और परंपराओं का निर्वाह
यह पर्व नहाए-खाए के साथ शुरू होता है और छठव्रती महिलाएं सुबह स्नान करके नदी किनारे पूजा करती हैं। इस विशेष अवसर पर कर्मनाशा नदी के दोनों किनारों पर व्रती महिलाएं सूर्य भगवान की आराधना करती नजर आती हैं। व्रती महिलाओं का कहना है कि छठ पूजा में विशेष पवित्रता और संकल्प की आवश्यकता होती है। आज स्नान और बेदी की पूजा के बाद घर जाकर खीर और रोटी बनाई जाती है, जिसे ग्रहण करने के बाद वे निर्जला व्रत का पालन करती हैं। रात में प्रसाद भी तैयार किया जाता है, जिसमें ठेकुआ और अन्य पारंपरिक मिठाइयां शामिल होती हैं।
सांस्कृतिक एकता का प्रतीक
छठ पर्व के समय इस अनोखे संगम में न केवल महिलाएं पूजा करती हैं, बल्कि आसपास के ग्रामीण और श्रद्धालु भी इस दृश्य का हिस्सा बनते हैं। कर्मनाशा नदी के किनारे इस पर्व पर आने वाली भीड़ में यूपी और बिहार दोनों राज्यों के लोग शामिल होते हैं। यह सांस्कृतिक मिलन केवल धार्मिक आस्था का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि इस पर्व के माध्यम से यूपी और बिहार के बीच गहरी सांस्कृतिक एकता को भी दर्शाता है। इस विशेष अवसर पर न केवल छठव्रती महिलाएं बल्कि उनके परिवार के सदस्य भी इस संगम का हिस्सा बनते हैं।