चंबल किनारे क्या हुआ? हजारों बच्चे एक साथ छोड़े गए नदी में! जानिए रहस्यमयी ऑपरेशन का सच

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Dhaulpur News: धौलपुर में चंबल नदी किनारे संकटग्रस्त बाटागुर कछुआ की दो प्रजातियों के 3267 बच्चों को सुरक्षित रूप से नदी में छोड़ा गया. यह कार्य चंबल घड़ियाल अभयारण्य, वन विभाग और टीएसए फाउंडेशन के संयुक्त प्रय…और पढ़ें

एक लाल तिलकधारी कछुआ और दूसरी ढोर प्रजाति शामिल है
हाइलाइट्स
- चंबल नदी में 3267 बाटागुर कछुए छोड़े गए.
- टीमवर्क से कछुओं के अंडों की सुरक्षा की गई.
- डीएफओ बोले, हर साल अंडों का संरक्षण करेंगे.
धौलपुर. धौलपुर से एक सकारात्मक और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी बड़ी खबर सामने आई है. चंबल नदी से सटे इलाके में संकटग्रस्त बाटागुर कछुआ की दो प्रजातियों के कुल 3267 बच्चों को सुरक्षित रूप से चंबल नदी में छोड़ा गया है. यह संरक्षण कार्य राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य, वन विभाग और टीएसए फाउंडेशन इंडिया के संयुक्त प्रयासों से संभव हो सका है.
इन कछुओं के अंडों को हेचरी में रखकर खास सुरक्षा प्रदान की गई थी. ये अंडे चंबल नदी क्षेत्र के मोर बसईया गांव के पास संरक्षित किए गए थे. परियोजना के तहत जिले में लगभग 160 नेस्ट तैयार किए गए, जहां से कुल 3267 बच्चों को सुरक्षित रूप से वापस चंबल नदी में छोड़ा गया. इन दो संकटग्रस्त प्रजातियों में एक लाल तिलकधारी कछुआ और दूसरी ढोर प्रजाति शामिल है.
डीएफओ बोले, यह कार्य हर वर्ष होगा
धौलपुर के डीएफओ वी. चेतन कुमार ने बताया कि हम हर साल इन प्रजातियों के अंडों का संरक्षण करते रहेंगे ताकि इनकी संख्या में वृद्धि हो और ये सुरक्षित रह सकें. हालांकि इस कार्य को पूरा करना आसान नहीं था. चंबल नदी के किनारे अवैध बजरी खनन एक बड़ी चुनौती बना रहा. धौलपुर और मुरैना की सीमा पर लगातार सक्रिय बजरी माफिया के बीच कछुओं के अंडों की निगरानी और सुरक्षा एक जटिल कार्य रहा. लेकिन अभयारण्य और वन विभाग की टीमों ने चौबीसों घंटे निगरानी की और इन अंडों को सियार जैसे शिकारी जानवरों से भी सुरक्षित रखा.
टीमवर्क से मिला संरक्षण का परिणाम
हेचरी का संचालन पूरी सतर्कता के साथ किया गया और टीम ने बेहतरीन काम किया. हेचरी की देखरेख क्षेत्रीय वन अधिकारी दीपक मीना और पवन पारीक के निर्देशन में हुई. कर्मचारियों संतराम और रामानंद ने दिन-रात अंडों की निगरानी की. कछुओं की इन संकटग्रस्त प्रजातियों को संरक्षण देना पर्यावरणीय संतुलन के लिए बेहद ज़रूरी है. चंबल की यह कोशिश आने वाले समय में अन्य इलाकों के लिए भी प्रेरणा बन सकती है.