गुजरात में मिट्टी में दबने से जिओलॉजिस्ट की मौत: IIT दिल्ली के प्रोजेक्ट के लिए हड़प्पा संस्कृति के केंद्र लोथल में नमूने ले रही थीं – Gujarat News
![](https://net4newsonline.in/wp-content/uploads/2024/05/ad6-min.jpg)
सैंपल एकत्र करने के लिए दोनों जिओलॉजिस्ट 12 फीट गहरे गड्ढे में उतरी थीं।
गुजरात में हड़प्पा संस्कृति के केंद्र लोथल में बुधवार सुबह मिट्टी धंसने से आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की दो महिला अधिकारी इसमें दब गईं। इसमें एक महिला की मौत हो गई। दोनों महिलाएं आईआईटी दिल्ली के अपने प्रोजेक्ट के तहत पिछले तीन दिनों से लोथल
.
सैंपल के लिए खोदा गया था 12 फीट गहरा गड्ढा डीवाईएसपी प्रकाश प्रजापति ने बताया कि आईआईटी दिल्ली में वायुमंडलीय विज्ञान के सहायक प्रोफेसर से पीएचडी कर रहीं यम दीक्षित और सुरभि वर्मा एक शोध परियोजना के हिस्से के रूप में भूवैज्ञानिक नमूने एकत्र करने के लिए लोथल आई थीं। दोनों तीन दिनों से यहां अलग-अलग इलाकों से सैंपल इकट्ठा कर रही थीं। इसी बीच आज सुबह 12 फीट गहरे गड्ढे से सैंपल इकट्ठा करते वक्त भूस्खलन की चपेट में आने से सुरभि वर्मा की मौत हो गई।
![](https://net4newsonline.in/wp-content/uploads/2024/11/गुजरात-में-मिट्टी-में-दबने-से-जिओलॉजिस्ट-की-मौत-IIT.jpg)
एक महिला अधिकारी की मौत लोथल की इस हेरीटेज साइट पर एकाएक मिट्टी धंसने की सूचना सबसे पहले दमकल को मिली। इसके बाद अधिकारियों और पुलिस प्रशासन की मदद से बचाव कार्य शुरू किया। दोनों को तुरंत गड्ढे से बाहर निकाला गया और सीएचसी बगोदरा के सिविल हॉस्पिटल लाया गया। सुरभि वर्मा का पोस्टमॉर्टम कराया जा रहा है और यम दीक्षित का इलाज चल रहा है।
![](https://net4newsonline.in/wp-content/uploads/2024/11/1732708076_855_गुजरात-में-मिट्टी-में-दबने-से-जिओलॉजिस्ट-की-मौत-IIT.jpg)
![](https://net4newsonline.in/wp-content/uploads/2024/11/1732708076_458_गुजरात-में-मिट्टी-में-दबने-से-जिओलॉजिस्ट-की-मौत-IIT.jpg)
लोथल सिंधु घाटी सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र है लोथल सिंधु घाटी सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। लोथल अहमदाबाद से 80 किमी दूर अहमदाबाद जिले के ढोलका तालुक में सरगवाला गांव के बाहरी इलाके में भोगावो और साबरमती नदियों के बीच स्थित है। एक समय इस जगह से समुद्र 5 किमी दूर था। यह यह दूरी 18 किमी की हो गई है। नवंबर 1954 में इस साइट की खोज की गई थी और 1955 से 1962 तक डॉ. एसआर राव के मार्गदर्शन में उत्खनन किया गया। यहां के अंडाकार टीले की परिधि 2 किमी और ऊंचाई 3.5 मीटर है।