Published On: Sun, Dec 8th, 2024

गुजरात कोर्ट ने पूर्व IPS संजीव भट्ट को बरी किया: गुजरात दंगों में मोदी की भूमिका होने का लगा चुके हैं आरोप


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अहमदाबाद1 घंटे पहले

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संजीव फिलहाल कोर्ट से बाहर नहीं आ पाएंगे क्योंकि वे 1990 के एक और मामले में जेल में उम्र-कैद की सजा काट रहे हैं। - Dainik Bhaskar

संजीव फिलहाल कोर्ट से बाहर नहीं आ पाएंगे क्योंकि वे 1990 के एक और मामले में जेल में उम्र-कैद की सजा काट रहे हैं।

गुजरात के पोरबंदर की एक कोर्ट ने पूर्व IPS अधिकारी संजीव भट्ट को 1997 के कस्टडी में टॉर्चर करने के मामले में बरी कर दिया है।

कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता साबित नहीं कर सके कि संजीव भट्‌ट ने शिकायतकर्ता को अपराध कबूल करने के लिए मजबूर किया था।

साथ ही कोर्ट ने कहा कि भट्ट उस समय पुलिस अधिकारी थे और उन पर केस चलाने के लिए जरूरी मंजूरी भी नहीं ली गई थी।

हालांकि, संजीव फिलहाल कोर्ट से बाहर नहीं आ पाएंगे क्योंकि वे 1990 के एक और मामले में जेल में उम्र-कैद की सजा काट रहे हैं।

क्या है पूरा मामला… 1994 के हथियार बरामदगी मामले के 22 आरोपियों में से एक नारन जादव ने 6 जुलाई 1997 को मजिस्ट्रेट कोर्ट में भट्‌ट के खिलाफ शिकायत की थी। उसने कहा था कि उसे पुलिस कस्टडी में संजीव भट्ट और कांस्टेबल वजुभाई चौ ने टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट (TADA) और आर्म्स एक्ट के मामले में कबूलनामा करने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से टॉर्चर किया था।

उसने भट्ट पर आरोप लगाया कि पोरबंदर पुलिस की टीम 5 जुलाई 1997 को ट्रांसफर वारंट पर अहमदाबाद की साबरमती सेंट्रल जेल से जादव को पोरबंदर में भट्ट के घर ले गई थी। जादव को उसके गुप्तांगों और शरीर के अन्य हिस्सों पर बिजली के झटके दिए गए। उसके बेटे को भी बिजली के झटके दिए गए।

जादव ने कोर्ट में टॉर्चर की जानकारी दी, जिसके बाद जांच के आदेश दिए गए। अदालत ने 31 दिसंबर 1998 को मामला दर्ज कर भट्ट और चौ को समन जारी किया। 15 अप्रैल 2013 को अदालत ने भट्ट और चौ के खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश दिया। चौ की मौत के बाद मामला रफा-दफा कर दिया गया।

मोदी की रिकॉर्डिंग और कोर्ट में हलफनामा भी दिया भट्ट तब सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका का आरोप लगाते हुए शीर्ष अदालत में एक हलफनामा दायर किया था। बाद में एसआईटी ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था।

संजीव भट्ट दिसंबर 1999 से सितंबर 2002 तक गांधीनगर में स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो में बतौर डिप्टी कमिश्नर थे। जब गोधरा कांड हुआ, उस समय वह तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी संभाल रहे थे। गोधरा कांड के बाद पूरे गुजरात में व्यापक दंगे भड़क उठे। सितंबर 2002 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को मोदी के भाषण की रिकॉर्डिंग देने के आरोप में भट्ट का ट्रांसफर किया गया था।

पहले से जेल में सजा काट रहे भट्ट भट्ट को इससे पहले जामनगर में 1990 के कस्टडी में मौत के मामले में उम्र कैद और 1996 में पालनपुर में राजस्थान के एक वकील को फंसाने के लिए ड्रग्स रखने के मामले में मार्च 2024 में 20 साल जेल की सजा हुई थी। फिलहाल भट्ट राजकोट सेंट्रल जेल में बंद है।

भट्ट 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित में कथित सबूत गढ़ने के मामले में कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आर बी श्रीकुमार के साथ भी आरोपी हैं।

गुजरात सरकार ने भट्ट को अनुपस्थिति के कारण पुलिस सेवा से हटा दिया था। इसके बाद वह गुजरात होई कोर्ट के फैसले को चुनाती देते हुए सुप्रीम कोर्ट गए जहां उनकी अपील खारिज कर दी गई।

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