गुंडीचा मंदिर में सेवादारों पर गिरी भगवान बलभद्र की मूर्ति: तालध्वज रथ से उतारते समय हादसा, 9 घायल; मूर्ति सुरक्षित

- Hindi News
- National
- Jagannath Puri Rath Yatra | Lord Balabhadra Idol Fell In Gundicha Temple
पुरी18 मिनट पहले
- कॉपी लिंक

भगवान बलभद्र की मूर्ति गिरने का वीडियो सोशल मीडिया वायरल हो गया है।
पुरी के गुंडीचा मंदिर में मंगलवार रात 9 बजे एक हादसा हो गया, जिसमें भगवान बलभद्र की मूर्ति सेवादारों पर गिर गई। इसमें 9 सेवादार घायल हो गए।
दरअसल 8 जुलाई को रथयात्रा के आयोजन के बाद, गुंडीचा मंदिर में पहांडी विधि चल रही थी। सेवादार रथों पर से भगवान की मूर्तियां उतारकर मंदिर के अंदर ले जा रहे थे।
बलभद्र जी को उतारते समय सेवादार रथ की ढलान पर फिसल गए और मूर्ति उन पर गिर गई। इसमें 9 सेवादार घायल हो गए। 5 का इलाज अस्पताल में चल रहा है। मूर्ति को कोई नुकसान नहीं हुआ है।
2 सेवादारों को इलाज के बाद छुट्टी मिली
एक घायल सेवक ने कहा कि मूर्ति से बंधी रस्सी जैसी सामग्री में कुछ समस्या के कारण यह दुर्घटना हुई।अस्पताल में भर्ती कराए गए दो लोगों को बाद में छुट्टी दे दी गई और वे अनुष्ठान में शामिल हो गए। ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने घटना पर चिंता व्यक्त की और घायल सेवकों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की।
उन्होंने कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन को तत्काल पुरी जाकर उचित कदम उठाने का निर्देश दिया। उपमुख्यमंत्री प्रावती परिदा भी पुरी गईं। उन्होंने कहा कि हम आगे की कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री को रिपोर्ट करेंगे।
15 जुलाई को श्रीमंदिर में लौटेंगे भगवान
हादसे के तुरंत बाद भाई-बहन भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की पूजा-अर्चना फिर से शुरू हो गई तथा सभी मूर्तियों को गुंडीचा मंदिर के अंदर ले जाया गया, जिसे उनका जन्मस्थान माना जाता है। भगवान यहां 15 जुलाई तक रहेंगे। उसी दिन बहुड़ा जात्रा या वापसी उत्सव होगा। इसी दिन तीनों मूर्तियां श्रीमंदिर में वापस आ जाएंगी।

गुंडीचा मंदिर, श्रीमंदिर से महज 3 किमी दूर है।
गुंडीचा मंदिर के आस-पास बदल जाता है माहौल
गुंडीचा मंदिर पुरी के जगन्नाथ मंदिर से महज 3 किमी दूर है। महाप्रभु हर साल जब भी यहां पहुंचते हैं, उसके एक महीने पहले से गुंडीचा मंदिर के 500 मी. के दायरे में हरेक घर में भगवान के आगमन की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। लोग शुद्ध सात्विक हो जाते हैं। नॉनवेज खाना छोड़ देते हैं। रथ यात्रा के सात दिन घर का हरेक सदस्य नए कपड़े पहनता है और महाप्रभु के पूजन के बाद मिलने वाले अभड़ा प्रसाद को खाकर ही दिन की शुरुआत करता है।
इस साल रथ यात्रा दो दिन क्यों?
जगन्नाथ मंदिर के पंचांगकर्ता डॉ. ज्योति प्रसाद के मुताबिक, हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा एक दिन की होती है, लेकिन 2024 में दो दिन की है। इससे पहले 1971 में यह यात्रा दो दिन की थी। तिथियां घटने की वजह से ऐसा हुआ।
दरअसल, हर साल ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ को स्नान करवाया जाता है। इसके बाद वे बीमार हो जाते हैं और आषाढ़ कृष्ण पक्ष के 15 दिनों तक बीमार रहते हैं, इस दौरान वे दर्शन नहीं देते।
16वें दिन भगवान का श्रृंगार किया जाता है और नवयौवन के दर्शन होते हैं। इसके बाद आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से रथ यात्रा शुरू होती है।

गुंडीचा मंदिर के बाहर खड़े तालध्वज, दर्पदलन और नंदीघोष रथ।
इस साल तिथियां घटने से आषाढ़ कृष्ण पक्ष में 15 नहीं, 13 ही दिन थे। इस वजह से भगवान के ठीक होने का 16वां दिन द्वितीया पर था। इसी तिथि पर रथ यात्रा भी निकाली जाती है।
7 जुलाई को भगवान के ठीक होने के बाद की पूजन विधियां दिनभर चलीं। इसी दिन रथ यात्रा निकलना जरूरी था। इस वजह से 7 जुलाई की शाम को ही रथ यात्रा शुरू की गई। यात्रा सूर्यास्त तक ही निकाली जाती है। इसलिए रविवार को रथ सिर्फ 5 मीटर ही खींचा गया था।
ये खबर भी पढ़ें…
1200 साल पुरानी रथ यात्रा: 865 पेड़ों की लकड़ियां, 150 से ज्यादा कारीगर और दो महीनों में तैयार होते हैं रथ

पुरी रथ यात्रा की परंपरा कब से शुरू हुई, इसकी पुख्ता जानकारी कहीं नहीं है। पुराणों के मुताबिक यह सतयुग से चली आ रही है। स्कंद पुराण के मुताबिक द्वापर युग से पहले सिर्फ भगवान विष्णु की रथ यात्रा होती थी। उन्हें नीलमाधव नाम से पूजा जाता था। द्वापर युग के बाद श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा के रथ शामिल हुए।… पढ़ें पूरी खबर