क्या अंग्रेजों की वजह से हम और आप पड़ रहे बीमार? जानिए कैसे ‘दिल’ हुआ कमजोर

Last Updated:
South Asia’s Health Crisis: एक रिसर्च में सामने आया है कि अंग्रेजों के राज ने दक्षिण एशियाई खासकर भारतीयों के स्वास्थ्य पर काफी असर डाला. कम उम्र में ही लोग कई बीमारियों से ग्रसित होने लगे.

कम उम्र में ही बीमार पड़ रहे हैं दक्षिण एशियाई लोग.
हाइलाइट्स
- ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने दक्षिण एशियाई स्वास्थ्य पर गहरा असर डाला
- दक्षिण एशियाई लोगों में हृदय रोग और डायबिटीज का खतरा अधिक है
- कुपोषण और अकाल ने पीढ़ियों के स्वास्थ्य को प्रभावित किया
South Asia’s Health Crisis: आप हर दिन व्यायाम कर सकते हैं, अच्छा खा सकते हैं और पर्याप्त नींद ले सकते हैं. लेकिन एक चीज है जिससे आप बच नहीं सकते. वह है आपकी दक्षिण एशियाई विरासत. जब आपके स्वास्थ्य की बात आती है तो आप कहां से आते हैं यह बहुत मायने रखता है. बहुत से लोग दक्षिण एशियाई होने से जुड़े चौंकाने वाले और खतरनाक स्वास्थ्य जोखिमों को नहीं जानते हैं. क्या आप जानते हैं कि आज दुनिया के आधे से ज्यादा दिल के मरीज दक्षिण एशियाई हैं? और यह तो बस शुरुआत है.
डॉ. मुबीन सैयद ने अपनी किताब ‘हीलिंग फ्रॉम आवर हिस्ट्री: हाउ कॉलोनियल-एरा फैमिन्स लेड टू ए मॉडर्न साउथ एशियन हेल्थ क्राइसिस’ में आज दक्षिण एशियाई लोगों को प्रभावित करने वाली स्वास्थ्य असमानताओं के बारे में बताया है. डॉ. मुबीन सैयद के अनुसार दक्षिण एशिया के स्वास्थ्य संकट की जड़ें उपनिवेशवाद में हैं. लेकिन यह केवल एक सैद्धांतिक तर्क नहीं है. इतिहास, महामारी विज्ञान और सामाजिक-सांस्कृतिक साक्ष्य इसका समर्थन करते हैं.
हृदय रोग का ज्यादा खतरा: दक्षिण एशियाई लोगों में दिल का दौरा और स्ट्रोक का खतरा ज्यादा होता है. अक्सर कम उम्र में ही.
कम उम्र में बीमारियां: कई स्वास्थ्य समस्याएं जो आमतौर पर बड़ी उम्र में होती हैं, दक्षिण एशियाई लोगों में कम उम्र में ही शुरू हो सकती हैं.
दक्षिण एशिया, जिसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान जैसे देश शामिल हैं, एक ऐसी जगह है जहां लोगों को स्वास्थ्य से जुड़ी कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. यहाृं कुपोषण से लेकर संक्रामक रोग और गैर-संक्रामक बीमारियां (जैसे डायबिटीज और हार्ट डिजीज) तक सब कुछ बहुत ज्यादा देखने को मिलता है. अब बात करते हैं उपनिवेशवाद की. उपनिवेशवाद का मतलब है जब किसी ताकतवर देश ने किसी दूसरे कमजोर देश पर कब्जा कर लिया और उस पर शासन किया. ब्रिटेन ने दक्षिण एशिया के ज्यादातर हिस्सों पर करीब 200 सालों तक राज किया. इसका हमारे स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ा. और इसके कुछ मुख्य कारण ये हो सकते हैं.
जब अंग्रेज भारत आए, तो उनका मुख्य मकसद यहां के धन और संसाधनों को लूटना था. उन्होंने यहां की खेती-बाड़ी, व्यापार और उद्योग को इस तरह बदल दिया जिससे उन्हें ज्यादा से ज्यादा फायदा हो. इसका नतीजा यह हुआ कि लोगों को भरपेट खाना नहीं मिला और कुपोषण फैल गया. यहां के लोग और गरीब हो गए. ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान नकद फसलों (जैसे कपास, नील, अफीम) को प्राथमिकता दी गई. जिससे स्थानीय कृषि व्यवस्था कमजोर हुई. बार-बार अकाल पड़े. 18वीं और 20वीं शताब्दी के बीच औपनिवेशिक भारत में कई अकाल पड़े, जिनमें लाखों लोग मारे गए. इसकी वजह से दक्षिण एशियाई लोगों की पीढ़ियों को अल्पपोषण या कुपोषण का सामना करना पड़ा. जिससे एपिजेनेटिक परिवर्तन हो सकते हैं जहां तनाव, खराब आहार और अकाल न केवल एक पीढ़ी बल्कि उनके वंशजों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं.
वैज्ञानिकों ने लंबे समय से प्रस्तावित किया है कि बार-बार अकाल (जैसे औपनिवेशिक दक्षिण एशिया में) के संपर्क में आने वाली आबादी ने एक ‘थ्रिफ्टी जीन’ विकसित किया. इसका मतलब होता है वसा जमा करने और कैलोरी का कुशलता से उपयोग करने के लिए एक आनुवंशिक प्रवृत्ति पनपना. जब प्रचुर मात्रा में आहार उपलब्ध होता है जो चीनी और वसा से भरपूर है तो शरीर उसको जमा कर लेता है. यह ‘थ्रिफ्टी जीन’ आज दक्षिण एशियाई लोगों में डायबिटीज, हृदय रोग और मेटाबॉलिक सिंड्रोम की उच्च दरों को समझाने में मदद कर सकता है. भले ही वे अधिक वजन वाले न हों.
स्वास्थ्य जरूरतों की उपेक्षा
अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिए सिर्फ उन स्वास्थ्य सुविधाओं पर ध्यान दिया जो उनके सैनिकों या अपने लोगों के काम आती थीं. आम जनता के लिए स्वास्थ्य सेवाएं बहुत कम या न के बराबर थीं. साफ-सफाई, पीने के पानी और बुनियादी स्वास्थ्य केंद्रों पर कोई खास निवेश नहीं किया गया. इससे बीमारियां आसानी से फैलती गईं और लोग इलाज के बिना मरते रहे. स्वतंत्रता के बाद भी सार्वजनिक स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर कमजोर बना रहा. ग्रामीण क्षेत्रों की उपेक्षा की गई. भारत में आज भी ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं सबको मुहैया नहीं है. अगर है भी तो उसकी स्थिति बहुत खराब है.
खत्म हो गई आत्मनिर्भरता
उपनिवेशवाद ने यहां के सामाजिक और आर्थिक ढांचे को पूरी तरह से बदल दिया. गांवों में जो आत्मनिर्भरता थी, वह खत्म हो गई. लोगों को शहरों में काम की तलाश में जाना पड़ा, जहां वे अक्सर भीड़भाड़ वाले और अस्वच्छ इलाकों में रहते थे. इससे बीमारियों के फैलने का खतरा और बढ़ गया. इसके अलावा, उन्होंने हमारी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को भी बढ़ावा नहीं दिया, जिससे लोगों के पास इलाज के विकल्प कम हो गए. चिकित्सा की स्वदेशी प्रणालियों (जैसे आयुर्वेद या यूनानी) को हाशिए पर धकेल दिया गया या खारिज कर दिया गया.शिक्षा, खासकर स्वास्थ्य शिक्षा पर भी अंग्रेजों ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. जब लोग अपने स्वास्थ्य के बारे में जागरूक नहीं होते, तो वे बीमारियों से बचाव के उपाय नहीं जानते. इसका नतीजा यह हुआ कि महामारी और बीमारियां आसानी से फैलती रहीं.
स्वतंत्रता के बाद दक्षिण एशियाई देशों में तेजी से आधुनिकीकरण हुआ. शहरीकरण की वजह से पश्चिमी आहार का चलन बढ़ा और नौकरीपेशा लोगों को ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं रही. प्रोसेस्ड फूड और कोल्ड ड्रिंक हमारे भोजन का हिस्सा बन गए. वसायुक्त भोजन और नई जीवनशैली की वजह से बीमारियां बढ़ने लगीं. दक्षिण एशिया के शहरी लोगों के लिए यह बदलाव काफी तेजी से हुआ. वे इसके लिए तैयार नहीं थे, इसका असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ा.
आज भी क्यों है इसका असर
आज, इतने सालों बाद भी उपनिवेशवाद का असर देखा जा सकता है. हमारी स्वास्थ्य व्यवस्थाएं आज भी उन पुरानी नींवों पर खड़ी हैं जो उतनी मजबूत नहीं थीं. गरीबी, असमानता, शिक्षा की कमी और अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं आज भी दक्षिण एशिया में बड़ी चुनौतियां हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि दक्षिण एशिया में मौजूदा स्वास्थ्य संकट की जड़ें काफी हद तक उपनिवेशवाद में हैं. इसने न सिर्फ हमारी अर्थव्यवस्था को कमजोर किया, बल्कि हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था और लोगों की जीवनशैली पर भी गहरा और नकारात्मक असर डाला है.