कॉलेज में इंटर की पढ़ाई नहीं, मेयर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव मुश्किल; नीतीश सरकार ने बिल पास कराया
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बिहार विधानसभा में मंगलवार को बिना किसी बहस के ध्वनि मत से तीन विधेयक पारित कर दिए गए, क्योंकि विपक्ष ने संशोधन पेश करने के बावजूद वॉकआउट किया। बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (संशोधन) विधेयक, 2024 में सभी उच्च शिक्षा संस्थानों के तहत शिक्षकों की भर्ती लाने का प्रस्ताव है। बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग के तहत बिहार सरकार ने 2017 में एक अधिनियम के जरिए रिवाइव किया था।
शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने बताया कि वर्तमान में, आयोग विश्वविद्यालयों और इसके अंतर्गत आने वाले कॉलेजों में नियुक्तियां करता है। नया विधेयक आयोग को बिहार सरकार द्वारा संचालित उच्च शिक्षा संस्थानों में सभी प्रकार की शिक्षकों की भर्ती करने का अधिकार देता है। दूसरा विधेयक बिहार स्कूल परीक्षा बोर्ड (संशोधन) विधेयक, 2024 है, जो बिहार सरकार के कॉलेजों में इंटरमीडिएट शिक्षा को समाप्त करने के निर्णय से अहम बन गया है।
बिहार सरकार ने फरवरी में विभिन्न राज्य विश्वविद्यालयों के तहत कॉलेजों में कला, विज्ञान और वाणिज्य की सभी तीन स्ट्रीम में इंटरमीडिएट शिक्षा को खत्म करने और 1 अप्रैल, 2024 से शुरू होने वाले नए सत्र से केवल उच्च माध्यमिक विद्यालयों में इसे चलाने का एक संकल्प जारी किया था। और राज्य राजपत्र में भी अधिसूचित किया गया था।
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बिहार सरकार ने 2007 में 10+2+3 की 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप कॉलेजों से इंटरमीडिएट शिक्षा को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का नीतिगत निर्णय लिया था। और 2007-09 सत्र से प्लस टू में सीबीएसई प्रारूप पेश किया था। 2007 में ही पटना विश्वविद्यालय अपने डिग्री कॉलेजों से इंटरमीडिएट को अलग करने वाला राज्य का पहला विश्वविद्यालय बन गया था।
यह प्रक्रिया अन्य विश्वविद्यालयों के लिए जारी रखी जानी थी, लेकिन नीति को लागू करने में 17 साल और लग गए। शिक्षा मंत्री ने कहा ने कहा कि संबद्धता प्रावधानों में बदलाव को शामिल करने और नवीनतम तकनीक का उपयोग करके डिजिटल परीक्षा प्रणाली को एकीकृत करने के लिए विधेयक लाया गया है।
वहीं बिहार नगर पालिका (संशोधन) विधेयक, 2024 का उद्देश्य गुटबाजी को रोकने के लिए मेयर और डिप्टी मेयर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना मुश्किल होगा। जिससे वार्ड पार्षदों की शक्तियां कमजोर होंगी। सड़क निर्माण मंत्री नितिन नबीन ने कहा ऐसे उदाहरण हैं जब मेयर और डिप्टी के खिलाफ दो साल और बाद में एक साल के बाद अक्सर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है, जो नगर पालिकाओं के कामकाज को प्रभावित करता है। इससे गुटबाजी और गलत दबाव बढ़ता है, जिससे कामकाज प्रभावित होता है। इसलिए, अविश्वास प्रस्ताव से संबंधित प्रावधानों को हटाया जा रहा है।