एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला ISS पर पोषण से जुड़े प्रयोग करेंगे: केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह बोले- पौधों पर रिसर्च के लिए बायोकिट लेकर ISS जाएंगे

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नई दिल्ली16 मिनट पहले
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केन्द्र सरकार में स्पेस विभाग के मंत्री जितेन्द्र सिंह ने शनिवार को बताया कि भारत के अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर पौधों पर रिसर्च और अंकुरण (बीजों से पौधे उगने) से जुड़े वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए बायोटेक किट्स लेकर जाएंगे।
उन्होंने कहा कि शुभांशु शुक्ला Axiom Mission 4 (Ax-4) के तहत ISS पर खाना और पोषण से जुड़े खास वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। ये प्रयोग ISRO और डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी (DBT) ने मिलकर तैयार किए हैं, जिनमें नासा भी सहयोग कर रहा है।
जितेन्द्र सिंह ने बताया कि ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला इस मिशन में पायलट की भूमिका में होंगे। उनके साथ अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री पेगी विटसन (कमांडर), पोलैंड के स्लावोश और हंगरी के टिबोर भी होंगे। शुभांशु शुक्ला भारत के पहले प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्रियों में से हैं और कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर उनके बैकअप हैं।

माइक्रोएल्गी पर माइक्रोग्रैविटी और रेडिएशन के असर का पता लगाएगा प्रयोग
जितेन्द्र सिंह ने बताया कि अंतरिक्ष में दो प्रयोग किए जाएंगे। पहला प्रयोग यह पता लगाएगा कि अंतरिक्ष में माइक्रो ग्रैविटी और सोलर रेडिएशन का माइक्रोएल्गी पर क्या असर पड़ता है। माइक्रोएल्गी एक पोषण से भरपूर खाने का स्रोत है, जो ऑक्सीजन बनाता है और कार्बन डाइऑक्साइड को सोखता है। ये एल्गी अंतरिक्ष में खुद को बनाए रखने वाले जीवन तंत्र के लिए बेहद जरूरी हो सकते हैं।
दूसरा प्रयोग स्पाइरुलिना और साइनेकोकोकस नाम की सूक्ष्म वनस्पतियों (cyanobacteria) पर किया जाएगा, जिन्हें “स्पेस सुपरफूड” कहा जाता है। यह देखा जाएगा कि इंसान के शरीर से निकलने वाली यूरिया जैसे नाइट्रोजन स्रोतों का इस्तेमाल करके इनका उत्पादन किया जा सकता है या नहीं।
ये प्रयोग भारत में बनाए गए खास बायोटेक किट्स से किए जाएंगे, जिन्हें DBT ने विकसित किया है। ये किट माइक्रोग्रैविटी यानी अंतरिक्ष की स्थिति के अनुसार डिजाइन की गई हैं और वैज्ञानिक तौर से इनकी टेस्टिंग की गई है। ये भारत की आत्मनिर्भरता और स्पेस टेक्नोलॉजी में बढ़ते कौशल का प्रमाण हैं।
शुभांशु शुक्ला: NDA क्लियर करके IAF पायलट बने
शुभांशु शुक्ला मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ के रहने वाले हैं। इनकी की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई अलीगंज, लखनऊ के सिटी मॉन्टेसरी स्कूल से पूरी हुई। 12वीं के बाद उन्होंने नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) का एंट्रेंस एग्जाम क्लियर किया और यहीं से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की।
NDA भारत में सशस्त्र बलों (थल सेना, नौसेना और वायुसेना) के लिए ऑफिसर कैडेट्स को प्रशिक्षण देने वाली एक प्रमुख संस्था है। ये ट्रेनिंग के साथ-साथ एकेडमिक डिग्री भी देती है, जो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), नई दिल्ली से एफिलिएटेड होती है।

अब जानिए मिशन के बारे में…
ड्रैगन कैप्सूल में चारों एस्ट्रोनॉट उड़ान भरेंगे
इलॉन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल में ये एस्ट्रोनॉट उड़ान भरेंगे। इस मिशन को फाल्कन-9 रॉकेट से फ्लोरिडा में नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा। लॉन्च की तारीख फाइनल अप्रूवल और मिशन की तैयारियों के अनुसार घोषित होगी।
मिशन का उद्देश्य
Ax-4 का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष में वैज्ञानिक अनुसंधान, प्रौद्योगिकी प्रदर्शन करना है। यह मिशन प्राइवेट स्पेस ट्रैवल को प्रोत्साहित करने और भविष्य में एक कॉमर्शियल स्पेस स्टेशन (Axiom Station) स्थापित करने की दिशा में एक्सिओम स्पेस की योजना का हिस्सा है।
- वैज्ञानिक प्रयोग: माइक्रोग्रैविटी में विभिन्न प्रयोग करना।
- टेक्नोलॉजी टेस्टिंग: अंतरिक्ष में नई तकनीकों का परीक्षण और विकास।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग: विभिन्न देशों के अंतरिक्ष यात्रियों को एक मंच प्रदान करना।
- एजुकेशनल एक्टिविटीज: अंतरिक्ष से पृथ्वी पर लोगों को प्रेरित करना और जागरूकता फैलाना।
प्राइवेट स्पेस मिशन है एक्सिओम 4
एक्सिओम मिशन 4 एक प्राइवेट स्पेस फ्लाइट मिशन है। अमेरिका की प्राइवेट स्पेस कंपनी एक्सिओम स्पेस और नासा के कोलेबोरेशन में यह मिशन हो रहा है।
एक्सिओम स्पेस का यह चौथा मिशन है। 17-दिवसीय मिशन एक्सिओम 1 अप्रैल 2022 में लॉन्च हुआ था। एक्सिओम का दूसरा मिशन 2 मई 2023 में लॉन्च हुआ था।
इस मिशन में चार एस्ट्रोनॉट्स ने आठ दिन स्पेस में बिताए थे। वहीं तीसरा मिशन 3 जनवरी 2024 में लॉन्च किया गया, जिसमें चालक दल ने स्पेस स्टेशन पर 18 दिन बिताए।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन क्या है? इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पृथ्वी के चारों ओर घूमने वाला एक बड़ा अंतरिक्ष यान है। इसमें एस्ट्रोनॉट रहते हैं और माइक्रो ग्रैविटी में एक्सपेरिमेंट करते हैं। यह 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रैवल करता है। यह हर 90 मिनट में पृथ्वी की परिक्रमा पूरी कर लेता है। 5 स्पेस एजेंसीज ने मिलकर इसे बनाया है। स्टेशन का पहला पीस नवंबर 1998 में लॉन्च किया गया था।
