एलन मस्क का इस्तीफा और अमेरिकी राजनीति: नई चुनौतियों के बीच आखिर ट्रंप की दिशा अब क्या होगी?

Elon Musk’s resignation: 29 मई की सुबह से ही दुनियाभर के मीडिया में एक खबर सुर्खियों में बनी हुई थी। खबर में कहा गया था कि टेस्ला के मालिक एलन मस्क ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शीर्ष सलाहकार पद से इस्तीफे का ऐलान किया है। मस्क ने अपनी ही कंपनी के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर यह बात साझा करते हुए लिखा-
“विशेष सरकारी कर्मचारी के रूप में मेरा तय समय पूरा हो रहा है, मैं राष्ट्रपति @realDonaldTrump का आभार व्यक्त करता हूं कि मुझे सरकारी खर्च को कम करने का मौका मिला।” उन्होंने कहा- “@DOGE मिशन समय के साथ और मजबूत होगा और यह सरकार में एक जीवनशैली बन जाएगा।”
अमेरिका में 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान एलन मस्क की ट्रंप के साथ नजदीकियां बढ़ीं और मस्क ने खुलकर ट्रंप का साथ दिया। उन्होंने न सिर्फ ट्रंप के चुनाव अभियान में भाग लिया बल्कि उसमें 250 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का सहयोग भी दिया।
चुनाव जीतने के बाद ट्रंप ने मस्क को अपना विशेष सहयोगी बताते हुए उन्हें अपनी सरकार में एक खास भूमिका सौंपी। मस्क को Department of Government Efficiency (DOGE) का सह-प्रमुख बनाया गया। DOGE को मुख्य रूप से अमेरिकी सरकार की कार्यप्रणाली को सरल बनाने और उसके खर्चों में भारी कटौती करने का काम सौंपा गया। हालांकि इस काम का शुरुआती लक्ष्य 2 खरब डॉलर की बचत करने का था लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अप्रैल 2025 तक केवल 160 अरब डॉलर की ही बचत हो पाई। कुछ रिपोर्ट्स तो यहां तक कहती हैं कि कटौती के उपायों पर ही इतना खर्च हो गया कि उसने कटौती से होने वाले फायदे को बेअसर कर दिया।
इस्तीफे के मुख्य कारण-
मस्क के इस्तीफे की सबसे बड़ी वजह ट्रंप सरकार के नए खर्च योजना विधेयक यानी “One Big Beautiful Bill” को माना जा रहा है। इसमें टैक्स में भारी कटौती और सैन्य बजट में बढ़ोतरी जैसे कदम शामिल थे। मस्क ने सार्वजनिक रूप से इस पर नाराजी जताते हुए कहा था कि यह बिल DOGE की बचत योजनाओं को नुकसान पहुंचाएगा साथ ही बजट घाटे को और बढ़ाएगा। कॉरपोरेट दुनिया से आए मस्क ने सरकारी तंत्र को कॉरपोरेट अंदाज में सुधारने का बीड़ा उठाया था। उन्हें अपनी प्रशासनिक क्षमता पर बहुत भरोसा या यूं कहें कि मुगालता था। लेकिन बाद में उन्हें भी यह स्वीकार करना पड़ा था कि कॉरपोरेट जैसी दक्षता सरकार में लाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि सरकारी सिस्टम में बहुत ज्यादा लालफीताशाही और जटिलताएं होती हैं।
ट्रंप की टैरिफ नीति का खुला विरोध
एलन मस्क के इस्तीफे के पीछे सिर्फ बजट नीतियों से असहमति ही नहीं थी, बल्कि टैरिफ (आयात शुल्क) जैसे मुद्दों पर गहरे मतभेद भी इसमें शामिल थे। मस्क शुरू से ही मुक्त व्यापार (Free Trade) के समर्थक रहे हैं। राष्ट्रपति ट्रंप ने जब सभी आयातों पर 10 प्रतिशत बेसलाइन टैरिफ लगाने का प्रस्ताव रखा, तो मस्क ने उनसे सीधे अपील की कि इस फैसले को वापस लिया जाए। उनका मत था कि यह नीति अमेरिका की अर्थव्यवस्था और विदेशों से रिश्तों को नुकसान पहुंचाएगी।
इस विवाद ने उस समय कानूनी मोड़ ले लिया जब 28 मई 2025 को अमेरिका की कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड ने फैसला दिया कि राष्ट्रपति ट्रंप ने “लिबरेशन डे टैरिफ्स” लगाकर अपने संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण किया है। इस फैसले में टैरिफ रद्द कर दिए गए और मस्क की सोच को न्यायिक समर्थन मिला।
टैरिफ नीति की आलोचना पर मस्क को ट्रंप प्रशासन के भीतर भी विरोध का सामना करना पड़ा। ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने मस्क को ‘कार असेंबलर’ कह कर उनका मजाक उडाया तो। मस्क ने नवारो की काबिलियत पर सवाल उठाते हुए उन्हें “ईंट की बोरी से भी गयाबीता मूर्ख” (dumber than a sack of bricks) कह डाला। यह बयानबाज़ी बताती है कि ट्रंप प्रशासन के भीतर कितने गहरे वैचारिक मतभेद चल रहे हैं।
मस्क के इस्तीफे का असर-
मस्क कॉरपोरेट की दुनिया में अपनी सफलता और असफलता दोनों के लिए जाने जाते हैं। उनकी निजी जीवन शैली से लेकर कॉरपोरेट में काम करने का उनका तरीका हमेशा चर्चाओं में रहा है। वे अजीबोगरीब और चौंकाने वाले फैसलों के लिए चर्चित रहते हैं। काफी हद तक यही हाल राष्ट्रपति ट्रंप का भी है। ऐसे में इस जोड़ी के लंबे समय तक साथ चल पाने पर पहले से ही संशय था। अब जब मस्क ने ट्रंप का सरकारी साथ छोड़ दिया है तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इस घटना का अमेरिका और अंतर्राष्ट्रीय जगत पर क्या असर पड़ेगा।
अमेरिका के लिए एक असर तो यह संभावित है कि वहां सरकार की नीतियों में बदलाव को लेकर नई बहस खड़ी हो सकती है। DOGE योजनाओं के स्वरूप पर पुनर्विचार के लिए ट्रंप प्रशासन पर दबाव बढ़ सकता है। चूंकि यह इस्तीफा सरकार के भीतर मतभेदों को भी उजागर करता है अत: भविष्य में इसका असर प्राइवेट सेक्टर और सरकार के रिश्तों पर पड़ सकता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असर की बात करें तो मस्क के जाने से अमेरिका में निवेश करने वालों को यह संदेश जा सकता है कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थसत्ता वाले इस देश की आर्थिक नीतियों में स्थिरता नहीं है। टेस्ला और स्पेस एक्स जैसी कंपनियों के चलते मस्क का कारोबार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है। उनका इस्तीफा अमेरिका की नवाचार और विशिष्ट कार्यक्षमता वाली छवि को नुकसान पहुंचा सकता है।
चूंकि मस्क ने संकेत दिया है कि अब वे राजनीति से दूरी बनाकर अपने कारोबारी उपक्रमों टेस्ला और स्पेस एक्स पर ध्यान देंगे, तो माना जा सकता है कि अब वे सरकारी पचडे से दूर ही रहना चाहेंगे।
दरअसल, सरकारी भूमिका निभाने से मस्क की कंपनियों, खासकर टेस्ला पर नकारात्मक असर पड़ा है। टेस्ला का मुनाफा 71 प्रतिशत तक गिरा है। मस्क की व्यावसायिक और राजनीतिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन को लेकर उनके निवेशकों में भी चिंता होने लगी थी।
मस्क और ट्रंप का व्यक्तिगत रिश्ता प्यार और टकराव वाला रहा है। 2024 के चुनाव में मस्क ट्रंप के बड़े समर्थक थे, लेकिन आर्थिक नीतियों और प्रशासनिक तौर-तरीकों पर मतभेद के चलते दोनों के रिश्ते में दूरियां भी बनीं। भविष्य में मस्क के ट्रंप प्रशासन से रिश्ते कैसे रहेंगे यह कहना अभी मुश्किल है। यह भी संभव है कि कारोबारी नीतियों आदि को लेकर आने वाले समय में उनका ट्रंप प्रशासन के साथ टकराव भी देखने को मिले। यदि टकराव बढ़ता है तो अपनी फितरत के चलते ट्रंप भी चुप नहीं बैठेंगे और उनकी तरफ से होने वाली प्रतिक्रिया मामले को और जटिल ही बनाएगी।
क्या यह ट्रंप को झटका है-
एलन मस्क का ट्रंप प्रशासन से इस्तीफा एक महत्वपूर्ण राजनीतिक, सामाजिक और कारोबारी घटना है। इसका असर कई स्तरों पर होगा, लेकिन इसे पूरी तरह से ट्रंप के लिए नकारात्मक मानना भी ठीक नहीं होगा। इसे व्यक्तित्व और विचारधारा के टकराव और कार्यशैली की विसंगति या विरोधाभास के रूप में देखा जा सकता है। मस्क जहां नवाचार, भविष्य की सोच, वैश्विक पूंजीवाद और तकनीक आधारित शासन के पक्षधर हैं वहीं ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में राष्ट्रवादी, संरक्षणवादी (प्रोटेक्शनिस्ट) और सख्त सरकार का चेहरा बनकर उभरे हैं।
मध्यम वर्ग, स्वतंत्र मतदाता और वैश्विक अभिजात वर्ग के लिए मस्क का जाना ट्रंप की व्यापारिक समझदारी और भविष्य की सोच वाली छवि को चोट पहुंचाता है। जबकि ट्रंप समर्थक इस बात से संतुष्ट हो सकते हैं कि ट्रंप वैश्विक शक्तियों से लड़ रहे हैं और ‘अरबपति अभिजात वर्ग’ के दबाव में नहीं आ रहे। इस बात की संभावना कम ही है कि इस घटना के बाद ट्रंप अपनी नीतियों में कोई क्रांतिकारी बदलाव करें या अपने कदम पीछे खींचें।
यहां यदि हम ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना करें तो एक बात दोनों में लगभग समान दिखाई देती है। दोनों ही नेता अपनी आलोचना के बाद पीछे हटने के बजाय और अधिक निर्णयात्मक और अपनी धारणाओं के प्रति और अधिक दृढ़ हो जाते हैं।
कुल मिलाकर एलन मस्क के इस्तीफे का सार यह है कि ट्रंप सरकार और निजी क्षेत्र के दिग्गजों के बीच सामंजस्य आसान नहीं है। अब देखना होगा कि ट्रंप और मस्क दोनों ही भविष्य में अपने व्यवहार और कार्य से इस घटना को कौनसी दिशा देते हैं। एक दूसरे के प्रति नरमी बरतते हैं या सख्त रवैया अपनाते हैं। जाहिर है दोनों स्थितियों के परिणाम अलग-अलग और दूरगामी होंगे, न सिर्फ अमेरिका के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए भी।
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