एक समुदाय ऐसा भी… दहकती आग के ऊपर करते है नृत्य, मुंह में अंगार लेकर छोड़ते है फुहार!

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Barmer News: जसनाथी सम्प्रदाय के नर्तक अग्नि के दहकते अंगारों से गुजरते हैं, अठखेलियां करते हैं. दहकते अंगारों पर ऐसे चलते हैं जैसे फूलों पर चल रहे हों. खिलौनों की तरह अंगारों को हाथों में ले लेते हैं. मुंह में…और पढ़ें
हाइलाइट्स
- जसनाथी साधु धधकते अंगारों पर नृत्य करते हैं.
- अग्नि नृत्य की परंपरा 500 साल पुरानी है.
- यह नृत्य राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत को गौरव प्रदान करता है.
बाड़मेर. धधकते अंगारों पर नंगे पांव नृत्य करना किसी साधारण मनुष्य के बस की बात नहीं है. लेकिन जसनाथ सम्प्रदाय के साधु इसे हर साल आस्था के रंग में रंगकर निभाते हैं. जब बाड़मेर की रेतीली धरती पर रात ढलती है और जसनाथी साधु अंगारों पर थिरकते हैं तो वह सिर्फ एक नृत्य नहीं बल्कि आत्मा की अग्नि से तपकर निकली साधना बन जाती है.
करीब 500 साल पुरानी है अग्नि नृत्य की परंपरा
जसनाथी सम्प्रदाय द्वारा करीब 500 वर्ष पूर्व जीव-जंतुओं की रक्षा और मानव कल्याण के उद्देश्य से इस नृत्य की शुरुआत की गई थी. लीलसर महंत मोटनाथ महाराज के अनुसार यह नृत्य जसनाथ भगवान की अटूट आस्था से जुड़ा है. नर्तक सारी रात अंगारों पर नृत्य करते हैं और यह परंपरा आज भी जसनाथी पुरुषों द्वारा निभाई जाती है.
जसनाथी गायबी कीर्तनकारों और वादकों का दल सफेद परिधान और भारी साफा पहने नगाड़ों की थाप पर मंगलाचरण करता है. अग्नि नृत्य से पहले स्थल पर बड़े-बड़े लकड़े करीने से लगाए जाते हैं. हवन विधि और मंत्रोच्चार के साथ अग्नि प्रज्वलित की जाती है. जैसे ही ज्वाला उठती है, दर्शक चारों ओर एकत्र हो जाते हैं. गायबी कलाकार तख्तों पर चंद्राकार बैठते हैं और जसनाथजी की प्रतिमा व ध्वज के सामने कीर्तन करते हैं. इसी दौरान साधु धधकती आग पर नृत्य करते हैं और अंगारे मुंह में भी लेते हैं.
औरंगजेब भी रह गया था दंग
कहा जाता है कि औरंगजेब के शासनकाल में जसनाथ महाराज की तीसरी पीढ़ी के संत रुस्तम महाराज थे. दिल्ली दरबार में नगाड़े बजाने वालों को बुलाया गया. वहां एक बड़े कुंड में लकड़ियां जलाकर अग्निनृत्य करने को कहा गया. जसनाथ महाराज प्रकट हुए और रुस्तम महाराज को आशीर्वाद दिया कि जसनाथ के 36 नियमों का पालन करने वाले सिद्ध होंगे. जब ओंकार राग में कीर्तन गाया गया तो अग्नि शीतल हो गई. यह चमत्कार देखकर औरंगजेब तक हिल गया और जसनाथ सम्प्रदाय की सिद्धि को स्वीकार करना पड़ा. बाड़मेर की तपती रेत पर जब जसनाथी साधु अग्नि नृत्य करते हैं तो वह सिर्फ कला नहीं बल्कि आत्मा, परंपरा और तपस्या का अद्भुत संगम होता है. यह परंपरा न सिर्फ धार्मिक आस्था को बल देती है बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत को भी गौरव प्रदान करती है.