इस गांव के मर्द नहीं मना पा रहे सुहागरात, बीच में आ रही ये कमी, चाहकर भी नहीं कर पा रहे दूर!

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जयपुर के पास एक ऐसा गांव हैं, जहां के मर्द शायद सबसे एलिजिबल बैचलर्स होंगे. इनके पास नौकरी है लेकिन छोकरी नहीं है. कहने का मतलब है कि इस गांव के अधिकांश मर्द अविवाहित हैं. आखिर क्या है इसकी वजह?

पानी की किल्ल्त बनी सुहागरात पर ग्रहण (इमेज- फाइल फोटो)
राजस्थान का बांसवाड़ा जिला, जहां माही नदी की अथाह जलराशि बहती है, वहां छोटी सरवन उपखंड का कुंडल गांव बूंद-बूंद पानी को तरस रहा है. 70 घरों और 300 लोगों की आबादी वाला यह गांव गर्मियों में पानी की भयावह किल्लत से जूझता है. एकमात्र हैंडपंप न केवल ग्रामीणों बल्कि सैकड़ों मवेशियों की प्यास बुझाने का इकलौता साधन है. कुएं और जलाशय सूख चुके हैं और अधिकांश हैंडपंप खराब पड़े हैं. इस संकट ने न केवल ग्रामीणों की रोजमर्रा की जिंदगी को नरक बना दिया बल्कि युवाओं के भविष्य को भी अंधेरे में धकेल दिया है. पानी की कमी के कारण गांव के युवाओं की शादियां टूट रही है और कई पलायन के लिए मजबूर हो रहे हैं.
कुंडल गांव की कहानी दक्षिणी राजस्थान के कई गांवों की हकीकत को दर्शाती है. माही नदी के पास होने के बावजूद गांव में पेयजल की व्यवस्था न के बराबर है. एक 28 वर्षीय ग्रेजुएट युवा महेश ने दुखी मन से बताया, “मैंने पढ़ाई पूरी की लेकिन पानी की कमी के कारण मेरी शादी नहीं हो रही. रिश्ते आते हैं पर लोग गांव की हालत देखकर लौट जाते हैं.” यह दर्द सिर्फ महेश का नहीं बल्कि गांव के हर कुंवारे युवा का है. रमेश, एक अन्य युवा, ने आंसुओं के साथ कहा, “कई बार पलायन का मन करता है लेकिन मां-बाप को कौन पानी पिलाएगा?” पानी की यह किल्लत अब शारीरिक के साथ-साथ भावनात्मक बोझ बन चुकी है.
बेहद बुरी है स्थिति
महिलाओं की स्थिति और भी दयनीय है. गांव की महिलाएं रोजाना दो किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाने को मजबूर हैं. सुबह से शाम तक पानी की जुगत में लगी रहने वाली इन महिलाओं की जिंदगी इस संकट ने और मुश्किल कर दी है. एक बुजुर्ग महिला ने बताया, “हमारी उम्र पानी ढोने में गुजर रही है. बेटियों की शादी के लिए रिश्तेदार डरते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि यहां पानी की कितनी मुसीबत है.” यह स्थिति सामाजिक ढांचे को भी तोड़ रही है क्योंकि पानी की कमी के कारण रिश्तेदार अपनी बेटियों की शादी कुंडल में करने से कतराते हैं.
पलायन करने को हैं मजबूर
पानी की कमी का असर केवल शादियों तक सीमित नहीं है. यह संकट गांव के युवाओं को पलायन के लिए मजबूर कर रहा है. बांसवाड़ा और पड़ोसी डूंगरपुर जैसे जिलों में पानी की कमी के कारण मौसमी पलायन आम है. पुरुष रोजगार की तलाश में गुजरात और अन्य राज्यों की ओर रुख करते हैं जबकि महिलाएं और बच्चे गांव में पानी की जद्दोजहद में रहते हैं. 2018 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों में पानी की कमी ने सामाजिक और आर्थिक संरचना को गहरे प्रभावित किया है. प्रतापगढ़ जिले में किए गए इस अध्ययन से पता चला कि पानी की कमी के कारण खेती और पशुपालन प्रभावित हो रहे हैं, जिससे पलायन बढ़ रहा है.
एक हैंडपंप के सहारे गांव
कुंडल गांव में एकमात्र हैंडपंप 300 लोगों और मवेशियों की जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ है. गर्मियों में स्थिति और खराब हो जाती है, जब हैंडपंप भी सूखने लगता है. जल जीवन मिशन के तहत हर घर में नल से जल का दावा किया गया है लेकिन कुंडल जैसे गांवों में यह हकीकत से कोसों दूर है. सामाजिक कार्यकर्ता दिलीप बिदावत ने बताया कि प्रभावशाली लोग पाइपलाइनों पर बड़े मोटर लगाकर पानी खींच लेते हैं, जिससे दूरदराज के गांवों तक पानी नहीं पहुंचता. सरकारी योजनाएं, जैसे मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान (MJSA), ने कुछ क्षेत्रों में पानी की स्थिति सुधारने की कोशिश की है लेकिन कुंडल जैसे दूरस्थ गांवों तक इनका प्रभाव नहीं पहुंचा.

न्यूज 18 में बतौर सीनियर सब एडिटर काम कर रही हूं. रीजनल सेक्शन के तहत राज्यों में हो रही उन घटनाओं से आपको रूबरू करवाना मकसद है, जिसे सोशल मीडिया पर पसंद किया जा रहा है. ताकि कोई वायरल कंटेंट आपसे छूट ना जाए.
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