Published On: Wed, Jun 26th, 2024

आज 48 साल बाद होगा लोकसभा स्पीकर का चुनाव, संसद में हंगामा तय; इस मांग पर अड़ा विपक्ष


Lok Sabha speaker election Today: 18वीं लोकसभा के पहले ही सत्र में सत्ता और विपक्ष के बीच तीखी तकरार देखने को मिल रही है। इसकी मुख्य वजह लोकसभा अध्यक्ष (स्पीकर) और उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) का पद है। लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए दो उम्मीदवार मैदान में हैं। 48 साल बाद लोकसभा अध्यक्ष के लिए चुनाव होने जा रहा है। आखिरी बार 1976 में चुनाव हुआ था। दरअसल लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए सरकार और विपक्ष के बीच मंगलवार को आम-सहमति नहीं बन सकी और अब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के उम्मीदवार तथा भाजपा सांसद ओम बिरला का मुकाबला कांग्रेस के कोडिकुन्नील सुरेश के साथ होगा। बिरला और सुरेश ने मंगलवार को क्रमश: राजग और विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (‘इंडिया’) के उम्मीदवारों के रूप में अपने नामांकन पत्र दाखिल किए।

विपक्षी दलों की बैठक में रणनीति पर चर्चा हुई, तृणमूल भी हुई शामिल

विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) के घटक दलों के नेताओं ने मंगलवार को बैठक कर लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव से जुड़ी रणनीति पर चर्चा की। इस बैठक में तृणमूल कांग्रेस भी शामिल हुई जिसने पहले कहा था कि उसे भरोसे में लिए बिना कोडिकुनिल सुरेश का नाम विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर घोषित कर दिया गया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के आवास ‘10 राजाजी मार्ग’ पर हुई बैठक में राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव, तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओब्रायन, शिवसेना (यूबीटी) के नेता अरविंद सावंत, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) की नेता सुप्रिया सुले, द्रमुक नेता टीआर बालू तथा कई अन्य दलों के नेता शामिल थे।

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का कहना था कि परंपरा के अनुसार लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को मिलना चाहिए और यदि सरकार पर इस सहमति देती है तो वह अध्यक्ष पद के लिए सरकार का समर्थन करेंगे। कांग्रेस ने कहा कि गेंद अब सरकार के पाले में है कि वह इस मुद्दे पर आम सहमति बनाये क्योंकि परंपरा के मुताबिक उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को मिलना चाहिए।

दूसरी तरफ, आज दिन में तृणमूल सांसद अभिषेक बनर्जी ने यह बयान देकर कांग्रेस के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी थी कि कि इस पद के लिए ‘इंडिया’ के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के कोडिकुनिल सुरेश को उम्मीदवार बनाने पर उनकी पार्टी से सलाह नहीं ली गई। उन्होंने यह भी कहा था कि सुरेश को समर्थन देने को लेकर पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी निर्णय लेंगी। अभिषेक बनर्जी ने कहा था, ‘‘किसी ने हमसे संपर्क नहीं किया। कोई बातचीत नहीं हुई, दुर्भाग्य से यह एकतरफा फैसला है।’’ अध्यक्ष पद के लिए चुनाव बुधवार यानी आज सुबह होगा और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के पास चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त संख्या है।

लोकसभा में 1976 के बाद पहली बार होगा अध्यक्ष का चुनाव

लोकसभा बुधवार को अध्यक्ष पद के लिए चुनाव का गवाह बनेगी जो 1976 के बाद इस तरह का पहला मौका होगा। कांग्रेस सदस्य कोडिकुनिल सुरेश को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के उम्मीदवार ओम बिरला के खिलाफ विपक्ष का उम्मीदवार बनाया गया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि रक्षामंत्री राजनाथ सिंह लोकसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को दिए जाने के संदर्भ में आश्वासन देने में विफल रहे। स्वतंत्र भारत में लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए केवल तीन बार 1952, 1967 और 1976 में चुनाव हुए।

वर्ष 1952 में कांग्रेस सदस्य जी वी मावलंकर को लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। मावलंकर को प्रतिद्वंद्वी शांताराम मोरे के खिलाफ 394 वोट मिले, जबकि मोरे सिर्फ 55 वोट हासिल करने में सफल रहे। वर्ष 1967 में टी. विश्वनाथम ने कांग्रेस उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी के खिलाफ लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव लड़ा। रेड्डी को विश्वनाथम के 207 के मुकाबले 278 वोट मिले और वह अध्यक्ष चुने गए। इसके बाद पांचवीं लोकसभा में 1975 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाए जाने के बाद पांचवें सत्र की अवधि एक वर्ष के लिए बढ़ा दी गई थी। तत्कालीन अध्यक्ष जीएस ढिल्लों ने एक दिसंबर, 1975 को इस्तीफा दे दिया था।

कांग्रेस नेता बलिराम भगत को पांच जनवरी, 1976 को लोकसभा अध्यक्ष चुना गया था। इंदिरा गांधी ने भगत को लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुनने के लिए प्रस्ताव पेश किया था, जबकि कांग्रेस (ओ) के प्रसन्नभाई मेहता ने जनसंघ नेता जगन्नाथराव जोशी को चुनने के लिए प्रस्ताव पेश किया था। भगत को जोशी के 58 के मुकाबले 344 वोट मिले।

वर्ष 1998 में तत्कालीन कांग्रेस नेता शरद पवार ने पी ए संगमा को अध्यक्ष चुनने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसे अस्वीकार कर दिया गया था। पवार के प्रस्ताव के अस्वीकार किए जाने बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तेलुगू देशम पार्टी के सदस्य जी एम सी बालयोगी को लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुनने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया। वाजपेई द्वारा रखा गया प्रस्ताव स्वीकृत हो गया।

आजादी के बाद से, केवल एम ए अय्यंगार, जी एस ढिल्लों, बलराम जाखड़ और जी एम सी बालयोगी ने अगली लोकसभाओं में इस प्रतिष्ठित पद को बरकरार रखा है। जाखड़ सातवीं और आठवीं लोकसभा के अध्यक्ष थे और उन्हें दो पूर्ण कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र पीठासीन अधिकारी होने का गौरव प्राप्त है। बालयोगी को उस 12वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में चुना गया, जिसका कार्यकाल 19 महीने का था। उन्हें 13वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में भी चुना गया था, हालांकि बाद में उनकी एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई।

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