अध्ययन: भारत में 1.8 करोड़ लोग ऑटिज्म से ग्रस्त, दिमाग का तेजी से विकास बढ़ा रहा बौद्धिक विकलांगता के खतरे
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दिमाग का सामान्य से अधिक तेजी से विकसित होना इंसान के लिए अच्छा नहीं बल्कि खतरे का संकेत है। एक अध्ययन के मुताबिक, ऐसा होने पर मनुष्यों में बौद्धिक विकलांगता या ऑटिज्म विकसित होने की आशंका होती है। बेल्जियम के फ्लेमिश इंस्टीट्यूट फॉर बायोटेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं का यह अध्ययन न्यूरॉन पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। मुख्य शोधकर्ता बेन वर्मार्के के मुताबिक, अध्ययन के निष्कर्ष का बौद्धिक विकलांगता और ऑटिज्म के इलाज को समझने और विकसित करने में अहम योगदान देंगे।
दरअसल, मस्तिष्क की कोशिकाओं यानी न्यूरॉन्स को पूरी तरह से परिपक्व होने में वर्षों लगते हैं। इसको ‘नियोटेनी’ कहा जाता है। यह मनुष्यों के लिए विशिष्ट उन्नत संज्ञानात्मक यानी सोचने-समझने की प्रक्रियाओं को विकसित करने में अहम मानी जाती है और जीन एसवाईएनजीएपी1 इन न्यूरॉन्स को लंबे वक्त तक विकसित होने में मदद करता है। यह दिमाग के सही काम करने के लिए अहम है। शोधकर्ताओं ने पाया कि इस जीन में परिवर्तन या उत्परिवर्तन इस प्रक्रिया को बाधित कर सकते हैं, जिससे बौद्धिक अक्षमता और ऑटिज्म हो सकता है।
चूहे के दिमाग ने खोला राज
शोधकर्ताओं ने चूहों के मस्तिष्क में उत्परिवर्तित एसवाईएनजीएपी1 जीन वाले मानव न्यूरॉन्स को प्रत्यारोपित किया ताकि यह देखा जा सके कि वे कैसे विकसित होते हैं। उन्होंने देखा कि इससे न्यूरॉन्स सामान्य से बहुत तेजी से बढ़ते और अन्य न्यूरॉन्स के साथ जुड़ते हैं, हालांकि वे दिखने में सामान्य लगते थे। तेज विकास से ये न्यूरॉन्स अपेक्षित समय से पहले ही दृश्य जानकारी का जवाब देने लगे।
क्या होता है ऑटिज्म
ऑटिज्म एक मानसिक विकार है, जिससे सोचने, संवाद करने, बातचीत करने व सामाजिक संकेतों को समझने में परेशानी होती है। ईटीहेल्थ वर्ल्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लगभग 1.8 करोड़ लोगों में ऑटिज्म की पहचान की गई। दो से नौ साल की उम्र के लगभग 1 से 1.5 फीसदी बच्चे भी इससे प्रभावित हैं।